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________________ अ०१६/प्र०४ तत्त्वार्थसूत्र / ४११ गुणस्थानाश्रित निरूपण के आधार दिगम्बरग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्रकार ने तत्त्वार्थ के निम्नलिखित सूत्रों में यह वर्णित किया है कि किस गुणस्थानवाले जीव को कौन-कौन से परीषह और कौन-कौन से ध्यान होते १. सूक्ष्मसाम्परायछद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश। ९/१०। २. एकादश जिने। ९/११। ३. बादरसाम्पराये सर्वे। ९/१२। ४. तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम्। ९/३४। ५. हिंसानृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः। ९/३५ । ६. परे केवलिनः। ९/३८। इस प्रकार का गुणस्थानाश्रित वर्णन किसी भी श्वेताम्बर-आगम में नहीं मिलता, जबकि षट्खण्डागम, कसायपाहुड, समयसार, भगवती-आराधना, मूलाचार आदि प्राचीन दिगम्बरग्रन्थ गुणस्थानाश्रित निरूपण से भरे पड़े हैं। इससे स्पष्ट है कि तत्त्वार्थसूत्रकार ने इन ग्रन्थों के आधार पर ही तत्त्वार्थ के उपर्युक्त सूत्रों में गुणस्थानानुसार परीषहों और चतुर्विध ध्यान के स्वामित्व का विभाजन किया है। ये प्रचुर प्रमाण दिन के प्रकाश के समान स्पष्ट कर देते हैं कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना दिगम्बरग्रन्थों के आधार पर हुई है, न कि श्वेताम्बरग्रन्थों के आधार पर, अतः तत्त्वार्थसूत्र शतप्रतिशत दिगम्बरग्रन्थ है। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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