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________________ अ०१६/प्र०४ तत्त्वार्थसूत्र / ४०५ उत्तरा. सूत्र - निरुद्धासवे संवरो। २९ / ११ । यहाँ तीनों में अर्थगत साम्य होते हुए भी शाब्दिक साम्य केवल पूर्वोक्त दो में ही है। ३२ तत्त्वार्थसूत्र - ईर्याभाषेषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः। ९/५ । चारित्तपाहुड – इरिया भासा एसण जा सा आदाण चेव णिक्खेवो। संजमसोहिणिमित्ते खंति जिणा पंच समिदीओ॥ ३६॥ समवायांग - पंच समिईयो पण्णत्ता, तं जहा-ईरियासमिई भासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई उच्चारपासव णखेलसिंघाणजल्ल-परिट्ठावणियासमिई। समवाय ५। यहाँ तत्त्वार्थ के सूत्र में वर्णित समितियों के नामों का शतप्रतिशत साम्य चारित्तपाहुड में वर्णित नामों के साथ है। समवायांग में भाण्ड और मात्रक ( श्वेताम्बर-साधुओं के पात्रविशेष) के आदान-निक्षेपण का उल्लेख है, उसकी छाया भी तत्त्वार्थ के सूत्र में दृष्टिगोचर नहीं होती। यह इस बात का अखण्ड्य प्रमाण है कि तत्त्वार्थसूत्रकार ने उक्त सूत्र की रचना में कुन्दकुन्द का ही अनुकरण किया है। ३३ तत्त्वार्थसूत्र - उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मच र्याणि धर्मः। ९/६।। बारस अणु. - उत्तमखममद्दवजवसच्चसउच्चं च संजमं चेव। तवचागमकिंचण्हं बम्हा इदि दसविहं होदि॥ ७०॥ समवायांग - दसविहे समणधम्मे पण्णत्ते, तं जहा-खंती मुत्ती अज्जवे महवे लाघवे सच्चे संजमे तवे चियाए बंभचेरवासे।६० सम. /१० । यहाँ तत्त्वार्थसूत्रकार ने बारस-अणुवेक्खा का शब्दशः अनुकरण किया है और शब्दक्रम भी ज्यों का त्यों है, किन्तु समवायांग के साथ न तो पूर्णतः शब्दसाम्य है, न ही क्रमसाम्य। ३४ तत्त्वार्थसूत्र - अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्रवसंवरनिर्जरालोक .बोधिदुर्लधर्मस्वाख्यास्तत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः। ९/७। १६०. खंती = क्षान्ति, मुत्ती = मुक्ति (आकिञ्चन्य), लाघवे = शौच, चियाए = त्याग। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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