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________________ अ० १६ / प्र० ४ तत्त्वार्थसूत्र / ४०१ से ही कुन्दकुन्द ने ग्रहण किये हैं । १५८ यह मान्यता युक्तिसंगत नहीं है । यदि कुन्दकुन्द ने तत्त्वार्थसूत्र से 'सद् द्रव्यलक्षणम्' सूत्र ग्रहण किया होता, तो उसे श्वेताम्बरमान्य सूत्रपाठ में भी होना चाहिए था । किन्तु नहीं है, इससे सिद्ध है कि वह दिगम्बरसूत्रपाठ में कुन्दकुन्द के पञ्चास्तिकाय से ही आया है । और जब वह पंचास्तिकाय से आया है, तब उसके साथवाले सूत्र भी पंचास्तिकाय से ही आये हैं, यह स्वतः सिद्ध होता है, क्योंकि उनका पंचास्तिकाय की गाथा से जो घनिष्ठ साम्य है, वह उपर्युक्त स्थानांग और उत्तराध्ययन के सूत्रों के साथ नहीं है। इसी प्रकार कुन्दकुन्द ने समयसार (गा. १०९) में बन्ध के चार हेतु बतलाये हैं- मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग, जबकि तत्त्वार्थ सूत्र में प्रमाद को भी बन्ध का हेतु बतलाया गया है । १५९ यदि कुन्दकुन्द ने तत्त्वार्थसूत्र का अनुकरण किया होता, तो वे भी बन्ध के पाँच ही हेतु बतलाते, चार नहीं । तथा कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्रकार से पूर्व हुए हैं, पश्चात् नहीं, यह पूर्व (अध्याय १० / प्र . १ ) में सिद्ध किया जा चुका है। तत्त्वार्थ सूत्र पंचास्तिकाय व्याख्याप्रज्ञ. तत्त्वार्थसूत्र पंचास्तिकाय — जोगो मणवयणकायसंभूदो। १४८ । तिविहे जोए पण्णत्ते, तं जहा – मणजोए, वइजोए, कायजोए । १६/१/५६४ । यहाँ भी तत्त्वार्थसूत्र और पंचास्तिकाय के वचनों में रचनात्मक घनिष्ठता है । - - Jain Education International - - २० कायवाङ् मनः कर्म योगः । ६ / १ | ---- २१ उत्तरा . सूत्र पुणं पावासवो तहा । २८ / १४ । इस तत्त्वार्थगत सूत्र का भी शब्दसाम्य पंचास्तिकाय की ही गाथा के साथ है। शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य । ६ / ३ | सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावं--- । १३२ । २२ तत्त्वार्थसूत्र (६ / २४ ) में तीर्थंकरप्रकृति के बन्धहेतु सोलह बतलाये गये हैं और दिगम्बर-ग्रन्थ षट्खण्डागम (पु.८ / ३ / ४१ / पृ. ७९) में भी सोलह ही निर्दिष्ट हैं, जब १५८. जैनधर्म का यापनीय सम्पदाय / पृ. २४७ । १५९. “मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ।" तत्त्वार्थसूत्र ८ / १ | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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