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________________ अ० १६ / प्र० २ ८ तत्त्वार्थसूत्र के कर्त्ता का नाम गृध्रपिच्छाचार्य श्वेताम्बरपरम्परा में तत्त्वार्थसूत्र और उसका भाष्य (तत्त्वार्थाधिगमभाष्य), दोनों एक ही व्यक्ति द्वारा रचित माने गये हैं । तत्त्वार्थाधिगमभाष्य के कर्त्ता ने भाष्य की प्रशस्ति में अपना नाम उमास्वाति बतलाया है - " तत्त्वार्थाधिगमाख्यं स्पष्टमुमास्वातिना शास्त्रम्।" इसलिए श्वेताम्बरपरम्परा उमास्वामी को ही तत्त्वार्थसूत्र का कर्त्ता मानती है । दिगम्बरपरम्परा में तत्त्वार्थसूत्रकार के लिए तीन नामों का प्रयोग मिलता है— गृद्धपिच्छाचार्य, उमास्वाति और उमास्वामी । इनमें सबसे पुराना नाम गृद्धपिच्छाचार्य है। धवलाकार वीरसेन स्वामी (८वीं शती ई०) ने निम्नलिखित वाक्य में तत्त्वार्थसूत्र को गृद्धपिच्छाचार्य द्वारा रचित बतलाया है तत्त्वार्थसूत्र / ३७५ " तह गिद्धपिंछाइरियप्पयासिद - तच्चत्थसुत्ते वि 'वर्तनापरिणामक्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य' इदि दव्वकालो परूविदो ।" (धवला / ष .खं / पु. ४/१,५,१/पृ. ३१६) । तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक आदि महान् ग्रन्थों के रचयिता श्री विद्यानन्दस्वामी (८वीं९वीं शती ई०) ने अधोलिखित वाक्य में सूचित किया है कि भगवान् महावीर के शासन में जो सूत्रकार हुए हैं, उनमें अन्तिम सूत्रकार आचार्य गृद्धपिच्छ थे " एतेन गृद्धपिच्छाचार्यपर्यन्तमुनिसूत्रेण व्यभिचारता निरस्ता ।" ( तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक/पृ. ६) । श्रीवादिराजसूरि (११वीं शती ई०) ने पार्श्वनाथचरित में तत्त्वार्थसूत्रकर्त्ता आचार्य गृद्धपिच्छ का इन शब्दों में उल्लेख किया है अतुच्छगुणसम्पातं गृद्धपिच्छं नतोऽस्मि तम् । पक्षीकुर्वन्ति यं भव्या निर्वाणायोत्पत्तिष्णवः ॥ अनुवाद — " उन महान् गुणों के आकर, गृद्धपिच्छ को मैं नमस्कार करता हूँ, जो उड़कर निर्वाण को पहुँचने के अभिलाषी भव्यों के लिए पंखों का काम करते हैं । " Jain Education International इन उल्लेखों से सिद्ध है कि ईसा की ११वीं शताब्दी तक दिगम्बर जैनपरम्परा में एकमात्र यही मान्यता प्रचलित थी कि तत्त्वार्थसूत्र के कर्त्ता आचार्य गृद्धपिच्छ हैं। श्रीविद्यानन्दस्वामी - कृत आप्तपरीक्षा की " प्रणेता मोक्षमार्गस्य" इत्यादि ११९वीं कारिका की स्वोपज्ञटीका में यह वाक्य आया है For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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