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अ०१६/प्र०२
तत्त्वार्थसूत्र / ३६३ है, उनके सम्बन्ध में कोई विस्तृत चर्चा नहीं की गई है। सत्तर पृष्ठों में चर्चा करनेवाला ग्रन्थ विकसित है या मात्र दो पृष्ठों में चर्चा करनेवाला विकसित है, पाठक स्वयं यह विचार कर लें।" (जै.ध.या.स./पृ.३०३ )।
इस विषय में मेरा निवेदन है कि ऐसे अनेक सूत्र हैं, जिनकी व्याख्या भाष्य में सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा दुगुनी, चौगुनी, पचगुनी और छहगुनी पंक्तियों में की गई है। देखिएअध्यायक्रमांक
सूत्रक्रमांक
पंक्तिसंख्या स. सि. भाष्य स. सि. भाष्य
س
س
४ ५
४ ५
५ ९
१९ २३
س
س
سه
سه
سه
له
११ ३४
११७ १३
سه
५
..
س
»
»
»
११
१२
४
३१
»
»
१४
१५
४
»
५
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