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________________ अ० १५ / प्र० २ मूलाचार समयसार - - - Jain Education International सूई जहा ससुत्ता ण णस्सदि दु पमाददोसेण । एवं ससुत्तपुरिसो ण णस्सदि तहा पमाददोसेण ॥ ९७३ ॥ छ मूलाचार / २४७ मूलाचार वंदित्तु देवदेवं तिहुअणमहिदं च सव्वसिद्धाणं । वोच्छामि समयसारं सुण संखेवं जहावुत्तं ॥ ८९४॥ वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गई पत्ते । वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवली भणियं ॥ १॥ इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि मूलाचार के कर्त्ता ने अपनी निरूपणशैली में कुन्दकुन्द की शब्दावली और उपमादि अलंकारों का प्रचुरतया अनुकरण किया है। इस तरह कुन्दकुन्द के सिद्धान्तों, उनकी गाथाओं और उनकी निरूपणशैली का इतना अनन्य अनुगामी होना इस बात का प्रमाण है कि मूलाचार के कर्त्ता आचार्य वट्टकेर कुन्दकुन्द की ही परम्परा के थे। अतः प्रेमी जी का प्रस्तुत हेतु भी असत्य है। १२ 'मूलाचार' में श्वेताम्बरीय गाथाओं का अभाव 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ग्रन्थ के कर्त्ता दिगम्बर विद्वानों पर आक्षेप करते हुए कहते हैं - " आश्चर्य तो यह लगता है कि हमारी दिगम्बर - परम्परा के विद्वान् मूलाचार में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से मात्र २१ गाथाएँ समानरूप से उपलब्ध होने पर इसे कुन्दकुन्द की कृति सिद्ध करने का साहस करते हैं और जिस परम्परा के ग्रन्थों से इसकी आधी से अधिक गाथाएँ समानरूप से मिलती हैं, उसके साथ इसकी निकटता को भी दृष्टि से ओझल कर देते हैं ।" (पृ. १३६ ) । दिगम्बरपरम्परा के विद्वान् इस आक्षेप के पात्र नहीं हैं। यद्यपि मूलाचार कुन्दकुन्द की कृति नहीं है ( देखिए, अध्याय १० / प्रकरण १ शीर्षक ३.७) तथापि वह कुन्दकुन्द की परम्परा का ग्रन्थ तो है ही, यह ऊपर सिद्ध किया जा चुका है । और जिन गाथाओं को उक्त ग्रन्थकर्त्ता कुन्दकुन्द से भिन्न परम्परा का मानते हैं, वे भिन्न परम्परा की नहीं हैं, वे दिगम्बरपरम्परा की ही हैं और दिगम्बरग्रंथों से ही श्वेताम्बरग्रन्थों में पहुँची हैं, यह भी पूर्व में सिद्ध किया जा चुका है। अतः किसी अन्य परम्परा से मूलाचार की निकटता होने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए उसे ओझल कर देने का आरोप भी निराधार है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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