SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अ०१५ / प्र०१ समस्त टीकाएँ दिगम्बर आचार्यों और पण्डितों द्वारा लिखित मूलाचार के दिगम्बरीय ग्रन्थ होने का एक प्रमाण यह भी है कि उस पर किसी भी श्वेताम्बर या यापनीय आचार्य ने टीका नहीं लिखी। सभी उपलब्ध टीकाएँ दिगम्बर आचार्यों एवं पण्डितों द्वारा ही लिखी गई हैं। उनके नाम२६ इस प्रकार हैं १. आचार्य वसुनन्दी (११०० ई०) द्वारा रचित आचारवृत्ति नामक संस्कृत टीका। २. आचार्य मेघचन्द्रकृत मूलाचारसद्वृत्ति नामक कन्नड़ टीका। ३. मुनिजनचिन्तामणि नामक एक अन्य कन्नड़ टीका। ४. मेधावी कवि द्वारा लिखित मूलाचारटीका। इनके अतिरिक्त पं० नन्दलाल जी छाबड़ा आदि विद्वानों ने अनेक भाषा-वचनिकाएँ भी रची हैं। टीकाओं के अतिरिक्त मूलाचार के आधार पर दिगम्बर आचार्यों और पण्डितों ने अनेक संस्कृतग्रन्थों का प्रणयन भी किया है। १५वीं शती ई० के भट्टारक सकलकीर्ति ने मूलाचारप्रदीप नामक ग्रन्थ की रचना की है। वीरनन्दी ने आचारसार ग्रन्थ लिखा है। अनगारधर्मामृत और चारित्रसार नामक ग्रन्थों की रचना भी मूलाचार के आधार पर की गई है। ये आचार्य उस समय विद्यमान थे, जब यापनीय-सम्प्रदाय फल-फूल रहा था। ये एक-दूसरे के साहित्य और सिद्धान्तों से सुपरिचित नहीं रहे होंगे, ऐसी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। आचार्य वसुनन्दी यापनीय-सम्प्रदाय के समकालीन थे। वे यापनीयसाहित्य से अच्छी तरह परिचित रहे होंगे। यदि मूलाचार सवस्त्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति का प्रतिपादक यापनीयग्रन्थ होता, तो वे उस पर टीका लिखकर अपना दिगम्बरत्व, आचार्यत्व एवं सम्यक्त्व दूषित न करते। यतः दिगम्बर होते हुए भी उपर्युक्त आचार्यों और पण्डितों ने मूलाचार पर टीकाएँ लिखी हैं, इससे भी सिद्ध होता है कि यह ग्रन्थ दिगम्बर-परम्परा का ही है। २६. डॉ० फूलचन्द्र प्रेमी और डॉ० श्रीमती मुन्नी जैन : सम्पादकीय / मूलाचार / पृष्ठ ९-१३। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy