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अन्तस्तत्त्व
[इक्कीस] ९. कुछ द्वात्रिंशिकाओं के कर्ता एक अन्य दिगम्बर सिद्धसेन और
कुछ श्वेताम्बर सिद्धसेन १०. न्यायावतार के कर्ता एक अन्य श्वेताम्बर सिद्धसेन
५३१ द्वितीय प्रकरण-मुख्तार जी के निर्णयों का विरोध और उसकी
आधारहीनता तृतीय प्रकरण-सर्वार्थसिद्धि पर समन्तभद्र का प्रभाव ___ लेख-सर्वार्थसिद्धि पर समन्तभद्र का प्रभाव पं० जुगलकिशोर मुख्तार , सम्पादक-'अनेकान्त'
५४० चतुर्थ प्रकरण-सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन समन्तभद्र से पूर्ववर्ती नहीं
- आप्तमीमांसाकार समन्तभद्र ही रत्नकरण्ड के कर्ता - लेख-रत्नकरण्ड के कर्तृत्व-विषय में मेरा विचार और निर्णय लेखक : पं० जुगलकिशोर मुख्तार
५५७ - प्रो० हीरालाल जी जैन का नया मत–'रत्नकरण्ड' का 'क्षुत्पिपासा'. पद्यगत 'दोष' शब्द आप्तमीमांसाकार के मतानुरूप नहीं - निरसन
५६३ आप्तमीमांसा में आप्तदोष के स्वरूप का वर्णन नहीं ५६३ अष्टसहस्री के 'विग्रहादिमहोदय' में भुक्त्युपसर्गाभाव अन्तर्भूत
५६४ आप्तमीमांसाकार को केवली में क्षुधादिदोष मान्य नहीं . ५६७ 'विद्वान्' शब्द 'तत्त्वज्ञानी' का वाचक, 'सर्वज्ञ' का नहीं ५६९ 'स्वदोषशान्त्या' आदि पद्यों में केवली के क्षुधादि दोषों की शान्ति का कथन
५७४ पूर्व में रत्नकरण्ड का समन्तभद्रकर्तृत्व एवं प्राचीनता स्वीकृत
५७५ ७. सर्वार्थसिद्धि में रत्नकरण्ड के शब्दार्थादि का अनुकरण ५७७ - ७वीं शती ई. के 'न्यायावतार' में 'रत्नकरण्ड' का पद्य
५७९ पञ्चम प्रकरण-रत्नकरण्ड और रत्नमाला में सैद्धान्तिक एवं कालगत भेद ६०४ ____ लेख-क्या रत्नकरण्डश्रावकाचार स्वामी समन्तभद्र की कृति
. नहीं है?-लेखक : न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल जैन कोठिया
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