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१४० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ० १४ / प्र० १
श्वेताम्बर-आगमों को प्रमाण मानते थे, अतः उनके अनुसार भी अनुयोगों के यही नाम हो सकते हैं। अपराजितसूरि द्वारा दिगम्बरमत का अनुसरण सिद्ध करता है कि वे यापनीयमत के अनुयायी नहीं हैं।
विजयोदयाटीका में प्रतिपादित ये सभी सिद्धान्त यापनीयमत के विरुद्ध हैं । इनसे सिद्ध होता है कि अपराजितसूरि यापनीयसंघ के नहीं, अपितु दिगम्बरसंघ के आचार्य हैं।
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