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अ० १३ / प्र०२
भगवती-आराधना / १०३ ७. आहार में मद्य, मांस और मधु के ग्रहण का सर्वथा निषेध किया गया है, जब कि यापनीयमान्य श्वेताम्बर-आगमों में वे अपवादरूप से ग्राह्य माने गये हैं।।
८. भगवती-आराधना में मुनियों के लिए अभिग्रह का विधान किया गया है। यापनीय-मान्य श्वेताम्बर-आगमों में इसका अभाव है।
९. भगवती-आराधना में कुन्दकुन्द का अनुसरण किया गया है। १०. इसकी सभी टीकाएँ दिगम्बरों द्वारा ही लिखी गई हैं।
११. भगवती-आराधना को दिगम्बराचार्यों ने प्रमाणरूप में स्वीकार किया है और उसके कर्ता शिवार्य के प्रति आदरभाव व्यक्त किया है।
१२. भगवती-आराधना की रचना यापनीयसंघ की उत्पत्ति से बहुत पहले हो चुकी
थी।
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