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________________ अन्तस्तत्त्व १०. लोच के ही द्वारा केशत्याग का नियम ११. मांस, मधु और मद्य का सर्वथा निषेध १२. अभिग्रहविधान १३. भगवती - आराधना में कुन्दकुन्द की गाथाएँ घ - दिगम्बरग्रन्थ होने के बहिरंग प्रमाण १. सभी टीकाकार दिगम्बर २. दिगम्बराचार्यों के लिए प्रमाणभूत रचनाकाल यापनीय - संघोत्पत्तिपूर्व ३. द्वितीय प्रकरण - यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता १. शिवार्य के गुरु दिगम्बर थे २. सर्वगुप्त के दिगम्बर होने का शिलालेखीय प्रमाण ३. दिगम्बराचार्यों के भी नाम आर्यान्त और नन्द्यन्त ४. अपराजित सूरि दिगम्बराचार्य थे ५. ७. भगवती - आराधना में श्वेताम्बरग्रन्थों की गाथाएँ नहीं ६. श्वेताम्बर -यापनीय - समानपूर्वपरम्परा कपोलकल्पित 'आराधना' की गाथाएँ श्वेताम्बर ग्रन्थों में ७. १. गुणस्थान - विकासवाद नितान्त कपोलकल्पित ७. २. प्रकीर्णकों की रचना 'आराधना' के पश्चात् ७. ३. ग्रन्थ का बृहदाकार अर्वाचीनता का लक्षण नहीं ७.४. वर्ण्यविषय की समानता रचनाकाल की समानता का लक्षण नहीं ७.५. दिगम्बरीय-गाथाओं के श्वेताम्बरग्रन्थों में पहुँचने के प्रमाण ७.६. परसाहित्यांश - ग्रहण से कर्तृत्व परिवर्तन नहीं ८. 'आचेलक्कुद्देसिय' आराधना की मौलिक गाथा ९. क्षपक के लिए मुनियों द्वारा आहार - आनयन अविरुद्ध १०. 'तालपलंबसुत्तम्मि' में 'कल्प' के सूत्र का उल्लेख नहीं ११. दिगम्बरमुनि भी 'पाणितलभोजी' १२. मेतार्य मुनि की कथा लोककथा १३. ‘विजहना-विधि' दिगम्बरपरम्परानुकूल Jain Education International For Personal & Private Use Only [ नौ ] ४९ ५१ ५४ ५५ ५५ ५५ ५७ ५८ ६० ů w w w w w w w w ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६६ ६७ ६८ ६९ ७० ७१ ७२ ७५ ७६ ७८ ८१ ८५ ८६ ९१ www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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