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३८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०८/ प्र०३ कोण्डकुन्दान्वय के साथ मूलसंघ, देशीयगण और पुस्तकगच्छ का सम्बन्ध ८६० ई० के कोन्नूर-शिलालेख में बतलाया गया है
"श्री-मूलसङ्घ - देशीयगण - पुस्तकगच्छतः।
जातस्त्रैकाल्ययोगीशः क्षीराब्धेरिव कौस्तुभः॥ ३५॥ --- श्रीकोन्दकुन्दान्वयाम्बरधुमणि विद्वज्जनशिरोमणि --- श्रीवीरनन्दिसैद्धान्तिकचक्रवर्तिगळु।"४४
निम्नलिखित अभिलेखों में भी उपर्युक्त अन्वय, संघ, गण और गच्छ का वर्णन है
"श्रीमूलसंघ-देशियगण-पुस्तकगच्छ-कोण्डकुन्दान्वय-इङ्गळेश्वरदबळिय---।" (१०४४ ई०)४५
"श्रीमूलसंघ-देसियगण-पोस्तकगच्छ-कोण्डकुन्दान्वयद श्रीमतु नागचन्द्रचान्द्रायण-देवरशिष्य---।"(१०७८ ई०/ हट्टण / ले.क्र.२१८)।
जैन-शिलालेख-संग्रह (मा.च./ द्वितीय भाग) के लेख क्र.२२३ (१०८० ई०), २३२ (१०९३ ई०), २६९ (१११८ ई०), २७५ (११२० ई०), २८४ (११२३ ई०), २९३ (११३० ई०), २९४ (११३० ई०), ३०० एवं ३०१ (११३३ ई०) में भी कुन्दकुन्दान्वय के साथ मूलसंघ, देशीयगण तथा पुस्तकगच्छ का ही सम्बन्ध दिखाया गया है। १२८० ई० के चिकमगलूर एवं १३५५ ई० के मलेयूर अभिलेखों-सहित ६ जैनशिलालेख-संग्रह (मा.च.)भाग ३ के भी ४२ अभिलेखों में कुन्दकुन्दान्वय के साथ मूलसंघ, देशीयगण और पुस्तकगच्छ का उल्लेख है। नौवीं शताब्दी ई० से लेकर बारहवीं शताब्दी ई० तक के शिलालेखों में कुन्दकुन्दान्वय और मूलसंघ के साथ क्राणूगण, तिन्त्रिणीकगच्छ एवं मेषपाषाणगच्छ का भी कथन है। यथा
"श्रीकुण्डकुन्दान्वय-मूलसंघे क्राणूगणे गच्छ-सु-तिन्त्रिणीके।' (१०७५ ई०)
"श्रीमूलसंघ-वियदमृतामळरुचि-रुचिर-कोण्डकुन्दान्वय-लक्ष्मी-महितं जिनधर्मल-लामं क्राणूग्गगणं जनानन्दकरम्।" (१११७ ई.)४८
४४. वही/ भा.२/ ले. क्र. १२७ / पृ.१४५, १४८। ४५. वही/ भा.२ / ले. क्र. १८०/ पृ.२२० । ४६. वही/ भाग/३/ले. क्र.५२६.५६१। ४७. वही / भा.२ / ले. क्र. २०९ / पृ.२६९ । ४८. वही / भा.२/ ले. क्र. २६७ / पृ.३९३।
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