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________________ ७१० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ० ११/प्र०९ तथ्य से सिद्ध होता है कि उसकी शतप्रतिशत मान्यताएँ, जैसे सचेलमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, परतीर्थिकमुक्ति, केवलिभुक्ति, भगवान् महावीर के गर्भपरिवर्तन इत्यादि की मान्यताएँ वे ही थीं, जो श्वेताम्बरपरम्परा की हैं। उसने केवल अचेललिंग से मुक्ति की मान्यता दिगम्बरपरम्परा से ग्रहण की थी, किन्तु अचेललिंग को सचेललिंग के विकल्प रूप में स्वीकार कर उसे दिगम्बरमान्यता नहीं रहने दिया। इस तरह श्वेताम्बरपरम्परा की शतप्रतिशत मान्यताओं और आगमों को स्वीकार करने से सिद्ध है कि यापनीयपरम्परा श्वेताम्बरपरम्परा का ही अंग या उपसम्प्रदाय थी। इसलिए कषायपाहड, षटखण्डागम आदि ग्रन्थ जैसे सचेल श्वेताम्बरपरम्परा के ग्रन्थ नहीं हैं. वैसे ही सचेलाचेल यापनीयपरम्परा के भी नहीं हैं। इसके अतिरिक्त कषायपाहुड, षट्खण्डागम, भगवती-आराधना और मूलाचार में दिगम्बरमत के अनुकूल एवं यापनीयमत के प्रतिकूल सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। (देखिये, प्रस्तुतग्रन्थ के अध्याय ११, १२, १३, १४ एवं १५)। इससे स्पष्टतः सिद्ध है कि ये दिगम्बरपरम्परा के ग्रन्थ हैं, यापनीयपरम्परा के नहीं। अतः साध्वी दर्शनकलाश्री जी का इन्हें दिगम्बर और यापनीय दोनों परम्पराओं का ग्रन्थ मानना प्रमाणविरुद्ध है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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