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६६२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ० ११/प्र०५ शब्द का प्रयोग भावस्त्री के अर्थ में भी किया गया है। कर्म-सिद्धान्तीय भाषा में भावस्त्री उस मनुष्य को कहा गया है, जो भाव से स्त्री है, किन्तु द्रव्य से पुरुष। मनुष्य को द्रव्यपुरुष बनाने वाला कारण है पुरुषांगोपांग नामक नामकर्म का उदय और द्रव्यपुरुष को भाव से स्त्री बनानेवाला कारण है स्त्रीवेद नामक नोकषाय-कर्म का उदय, जो द्रव्यपुरुष में स्त्री जैसा स्वभाव या प्रवृत्तियाँ उत्पन्न कर देता है और जिसके कारण उसमें द्रव्यस्त्री जैसी कुछ अयोग्यताएँ आ जाती हैं। (देखिये, पीछे प्र. ४/शीर्षक १०.४), इस भावस्त्रीत्ववाले द्रव्यपुरुष के लिए षट्खण्डागम आदि दिगम्बरजैनग्रन्थों में 'मनुष्यिनी' शब्द का प्रयोग किया गया है तथा द्रव्यस्त्री के लिए भी यह शब्द यथाप्रसंग प्रयुक्त हुआ है।
पाल्यकीर्ति शाकटायन 'स्त्री' या 'मुनष्यिनी' शब्द से सर्वत्र लोकप्रसिद्ध द्रव्यस्त्री अर्थ न लेने पर आपत्ति उठाते हैं। चूँकि दिगम्बरजैनग्रन्थों में वेदवैषम्य के आधार पर मनुष्यिनी शब्द का प्रयोग भावस्त्रीवेद के उदय से युक्त द्रव्यपुरुष के लिए भी किया गया है, अतः शाकटायन वेदवैषम्य के सिद्धान्त को ही अनुचित ठहराते हैं।
वेदवैषम्य को अस्वीकार करते हुए वे स्त्रीनिर्वाणप्रकरण में कहते हैं कि पुरुषशरीर में स्त्रीवेद का उदय होता है, इसका कोई प्रमाण नहीं है-न च पुन्देहे स्त्रीवेदोदयभावे प्रमाणमङ्गं च॥ ३८॥
__ वे उक्त ग्रन्थ में आगे कहते हैं कि "यदि पुरुष में स्त्रीवेद का उदय हो और स्त्री में पुरुषवेद का, तो पुरुष का पत्नीरूप में और स्त्री का पतिरूप में परस्पर विवाह होने में कोई बाधा नहीं होगी तथा इससे एक बड़ी समस्या यह खड़ी होगी कि स्त्रीवेदीपुरुषमुनि और पुरुषवेदी-पुरुषमुनि के साथ-साथ एक संघ में रहने पर ब्रह्मचर्यभंग की घटनाएँ घटेंगी। इसलिए वेदवैषम्य अप्रामाणिक है"
पुंसि स्त्रियां स्त्रियां पुंसि अतश्च तथा भवेद् विवाहादिः।
यतिषु न संवासादिः स्यादगतौ निष्प्रमाणेष्टिः॥ ४१॥३३ that mentions the nirvana of women, we do not reject this. We submit, however, that the word " Woman" here refers not to a woman physically endowed with breasts and the birth canal, but instead to a particular type of male who (temporarily) possesses a woman's sexual desire (for a man). Moreover, the word "Woman" is used conventionally by people for a man who has the nature of a woman. For example, seeing a eunuch who is devoid of manliness, people say that he is a woman, not a man". ( Gender And
Salvation, by Padmanabh S. Jaini, Page76, Para 96). १३३."If a "Woman" were to exist in a male body and a "man" in a female body,
then it would be possible to have marriage between people of the same sex. Furthermore, monks would not be able to live together." (Gender And Salvation, by Padmanabh S. Jaini, page 87).
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