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अ०८ / प्र० २
कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कथा मनगढ़न्त / ७
'भट्टारकपरम्परा के उद्भव, प्रसार एवं उत्कर्षकाल के विषय में युक्तिसंगत एवं सर्वजन - समाधानकारी निर्णय पर पहुँचने के लिए "नन्दिसंघ - पट्टावलि के आचार्यों की नामावलि" बड़ी सहायक सिद्ध होगी, इसी दृष्टि से उसे आदि से अन्त तक यथावत्-रूपेण यहाँ उद्धृत किया जा रहा है—
नन्दिसंघ की पट्टावलि के आचार्यों की नामावली
(इण्डियन ऐण्टीक्वेरी के आधार पर) ४
44
(२६)
(३६)
(४०)
कुन्दकुन्दाचार्य (४९)
(१०१)
लोहाचार्य
(१४२)
(१५३)
९.
यशोनन्दी
(२११)
(२५८)
११.
जयनन्दी
(३०८)
(३५८)
१३.
वज्रनन्दी
(३६४)
(३८६)
१५.
लोकचन्द्र
(४२७) १६. प्रभाचन्द्र
(४५३)
१७.
नेमचन्द्र
(४७८)
१८. भानुनन्दी
(४८७)
१९. सिंहन्दी
(५०८) २०. श्रीवसुनन्दी
(५२५)
२१.
वीरनन्दी
(५३१) २२. रत्ननन्दी
(५६१)
२३.
माणिक्यनन्दी
(५८५) २४. मेघचन्द्र
(६०१)
२५.
शांतिकर्त (६२७) २६. मेरुकीर्ति
(६४२)
उपर्युक्त छब्बीस आचार्य दक्षिणदेशस्थ भद्दिलपुर के पट्टाधीश हुए।
२७. महाकीर्ति (६८६) २८. विष्णुनन्दी
(७०४)
२९.
श्रीभूषण (७२६)
३०. शीलचन्द्र
(७३५)
१.
३.
५.
७.
भद्रबाहु द्वितीय
माघनन्दी
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(४) २. गुप्तिगुप्त
४.
जिनचन्द्र
६.
उमास्वामी
८.
१०. देवनन्दी
१२. गुणनन्दी
१४. कुमारनन्दी
यश: कीर्ति
४. The indian Antiquary, Vol. XX October 1891, pp. 351-355. आचार्य हस्तीमल जी ने यह पट्टावली डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य - कृत 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा' खण्ड ४ ( पृष्ठ ४४१-४४३) से उद्धृत की है।
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