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अ०१०/प्र०८
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ५३५ कि "नियुक्तिकार भद्रबाहु विक्रम की छठी शताब्दी में हो गये हैं। वे जाति से ब्राह्मण थे, प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहर इनका भाई था। --- नियुक्तियाँ आदि सर्व कृतियाँ इनके बुद्धिवैभव से उत्पन्न हुई हैं। --- वराहमिहिर का समय ईसा की छठी शताब्दी (५०५ से ५८१ ई० तक) है। इससे भद्रबाहु का समय भी छठी शताब्दी निर्विवाद सिद्ध होता है।"
__ मैं पहिले यह कह आया हूँ कि भद्रबाहु ने केवली के उपयोग के क्रमवाद का प्रस्थापन किया है और युगपद्वाद का खण्डन किया है। ईसा की पाँचवीं और विक्रम की छठी शताब्दी के विद्वान् आचार्य पूज्यपाद ने अपनी सर्वार्थसिद्धि (२/९) में युगपद्वाद का समर्थन मात्र किया है, पर क्रमवाद के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं लिखा। यदि क्रमवाद इनके पहिले प्रचलित हो चुका होता, तो वे इसका अवश्य आलोचन करते, जैसा कि पूज्यपाद के उत्तरवर्ती अकलंकदेव ने क्रमवाद का खण्डन किया है और युगपद्वाद का ही समर्थन किया है। इससे भी मालूम होता है कि नियुक्तिकार ईसा की पाँचवीं शताब्दी के बाद के विद्वान् हैं। उधर नियुक्तिकार ने सिद्धसेन के अभेदवाद की कोई आलोचना नहीं की, सिर्फ युगपद्वाद का ही खण्डन किया है। इसलिए इनकी उत्तरावधि सिद्धसेन का समय है, अर्थात् सातवीं शताब्दी है। इस तरह नियुक्तिकार का वह समय प्रसिद्ध होता है, जो श्री मुनि चतुरविजय जी ने बतलाया है। अर्थात् छठी शताब्दी इनका समय है। ऐसी हालत में नियुक्तिकार भद्रबाहु उपर्युक्त आपत्तियों के रहते हुए दूसरी-तीसरी शताब्दी के विद्वान् स्वामी समन्तभद्र के समकालीन कदापि नहीं हो सकते, समन्तभद्र के साथ उनके एकव्यक्तित्व की बात तो बहुत दूर की है। और इसलिए प्रोफेसर साहब ने वीर निर्वाण से ६०९ वर्ष के पश्चात् निकट में ही अर्थात् दूसरी शताब्दी में नियुक्तिकार भद्रबाहु के होने की जो कल्पना कर डाली है, वह किसी तरह भी ठीक नहीं है। आशा है प्रोफेसर सा० इन सब प्रमाणों की रोशनी में इस विषय पर फिर से विचार करने की कृपा करेंगे। (कोठिया जी का लेख समाप्त)।
इस प्रकार पं० परमानन्द जी शास्त्री, पं० (डॉ०) दरबारीलाल जी कोठिया तथा प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक द्वारा उपस्थित किये गये प्रचुर प्रमाणों और युक्तियों से सिद्ध हो जाता है कि प्रो० हीरालाल जी जैन ने नामसाम्य के कारण जो तुषमास-घोषक दिगम्बर शिवभूति (भावपाहुड, ५३), युवतिजनवेष्टित भावश्रमण दिगम्बर शिवकुमार (भावपाहुड, ५१) भगवती-आराधना के कर्ता दिगम्बर शिवार्य तथा कल्पसूत्र-स्थविरावली में उल्लिखित श्वेताम्बर शिवभूति, इन चार को एक ही व्यक्ति बतलाया है, वह सर्वथा कपोलकल्पित है। इसी प्रकार जो दिगम्बर भद्रबाहु-द्वितीय एवं समन्तभद्र तथा श्वेताम्बर भद्रबाहु-द्वितीय एवं सामन्तभद्र इन चार को भी अभिन्न व्यक्ति घोषित किया है, वह
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