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________________ ४८२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०१०/प्र०६ अनुवाद-"शुभपरिणाम से धर्म (पुण्यबन्ध) होता है और अशुभपरिणाम से अधर्म (पापबन्ध), किन्तु इन दोनों से रहित शुद्धपरिणाम से कर्म बन्ध नहीं होता।" सयल-वियप्पहँ (प. प्र. २/१९०) तथा जामु सुहासुहभावडा (प. प्र. २/१९४), इन दोनों दोहों में भी ‘परमसमाधि' नाम से शुद्धभाव का वर्णन है। सातवीं शती ई० के वरांगचरित में मुनियों की क्रियाओं को शुभ और शुद्धरूप में वर्णित किया गया है-शुद्धशुभप्रयोगाः (९/३३)। धवला (८वीं सदी ई०) में वीरसेन स्वामी लिखते हैं कि कर्मबन्ध शुभ और अशुभ परिणामों से होता है। शुद्धपरिणाम से उन दोनों (शुभाशुभ परिणामों या शुभाशुभ कर्मों) का निर्मूल क्षय होता है "कम्मबंधो हि णाम सुहासुहपरिणामेहिंतो जायदे। सुद्धपरिणामेहिंतो तेसिं दोण्णं पि णिम्मूलक्खओ" (धवला/ष.ख/पु.१२/४, २, ८,३ / पृ. २७९)। इस प्रकार आठवीं शताब्दी ई० से लेकर प्रथम शताब्दी ई० तक के पूर्ववर्ती ग्रन्थों में शुभ, अशुभ और शुद्ध तीनों भावों का उल्लेख मिलता है। अतः प्रो० ढाकी का यह कथन सर्वथा मिथ्या सिद्ध होता है कि "आठवीं शती ई० के पूर्व के किसी ग्रन्थ में 'शुद्धभाव' का उल्लेख नहीं है, वह सर्वप्रथम कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में मिलता है, अतः वे आठवीं शती ई० के हैं।" १३ कुन्दकुन्दसाहित्य में स्याद्वाद-सप्तभंगी, 'तत्त्वार्थसूत्र' में नहीं प्रो० ढाकी का पाँचवाँ अन्तरंग हेतु-कुन्दकुन्द स्याद्वाद और सप्तभंगी से परिचित हैं, जब कि उमास्वाति और सिद्धसेन नहीं हैं। इससे सिद्ध है कि कुन्दकुन्द इनसे परवर्ती हैं। (Asp. of Jaino., Vol.II, p.199)। निरसन कुन्दकुन्दसाहित्य 'तत्त्वार्थ' के सूत्रों की रचना का आधार यह सिद्ध किया जा चुका है कि उमास्वाति ने तत्त्वार्थ के अनेक सूत्रों की रचना कुन्दकुन्द के ग्रंथों के आधार पर की है तथा पट्टावलियों और शिलालेखों में उन्हें कुन्दकुन्द के अन्वय में उत्पन्न बतलाया गया है। अतः कुन्दकुन्द उमास्वाति से पूर्ववर्ती हैं। फलस्वरूप उमास्वाति द्वारा स्याद्वाद और सप्तभंगी का निरूपण न किया जाना उनके कुन्दकुन्द से प्राचीन होने का प्रमाण नहीं है। Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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