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[चालीस]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ को असत्य या हेत्वाभास सिद्धकर वे प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन दिगम्बराचार्य हैं, अतः सन्मतिसूत्र दिगम्बरग्रन्थ है। इसमें रत्नकरण्डश्रावकार को स्वामी समन्तभद्र की कृति न मानने के पक्ष में रखे गये तर्कों का भी निरसन किया गया है और यह भी स्थापित किया गया है कि सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन पूज्यपाद स्वामी से पूर्ववर्ती नहीं, अपितु उत्तरवर्ती हैं।
इसी प्रकार यापनीयग्रन्थ होने के पक्ष में रखे गये हेतुओं का निरसन कर दिगम्बरग्रन्थसाधक प्रमाणों के प्रस्तुतीकरण द्वारा एकोनविंश अध्याय में रविषेणकृत पद्मपुराण (पद्मचरित) को, विंश अध्याय में जटासिंहनन्दिकृत वराङ्गचरित को, एकविंश अध्याय में पुन्नाटसंघीय जिनसेनरचित हरिवंशपुराण को, द्वाविंश अध्याय में स्वयम्भू-निर्मित पउमचरिउ को, त्रयोविंश अध्याय में हरिषेण-प्रणीत बृहत्कथाकोश को, चतुर्विंश अध्याय में छेदपिण्ड, छेदशास्त्र एवं प्रतिक्रमण-ग्रन्थत्रयी को और पंचविंश' अध्याय में बृहत्प्रभाचन्द्रकृत तत्त्वार्थसूत्र को दिगम्बरग्रन्थ सिद्ध किया गया है।
इस खण्ड के अन्त में भी शब्दविशेष-सूची एवं प्रयुक्त ग्रन्थों की सूची निबद्ध की गयी हैं।
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