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अ०१०/प्र०४
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ३६१ सूक्ष्मता पर निर्भर होता है। इसलिए यदि हम प्रज्ञापना और षट्खण्डागम के कालक्रम का निर्णय केवल इस आधार पर करें कि षट्खण्डागम के विषय का प्रतिपादन प्रज्ञापनासूत्र की अपेक्षा अधिक विस्तार और सूक्ष्मता से किया गया है, तो यह भारी भूल होगी।"
इस युक्ति-प्रमाणसिद्ध तथ्य को ध्यान में रखते हुए विषयवैविध्य या विषयाधिकता के कारण कुन्दकुन्दसाहित्य को तत्त्वार्थसूत्र से उत्तरवर्ती मान लेना भारी भूल है। मान्य मालवणिया जी के विचारानुगामियों को इस भूल का परिहार करना चाहिए। इस भूल से श्वेताम्बर-आगम भी तत्त्वार्थसूत्र की अपेक्षा अर्वाचीन सिद्ध होते हैं, क्योंकि
१. सभी श्वेताम्बर अंगों एवं उपांगों में विषय-प्रतिपादन तत्त्वार्थसूत्र की अपेक्षा अधिक विस्तार से किया गया है। जैसे "जीवाजीवात्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्" (त.सू.१ / ४) इस सूत्र को उपाध्याय मुनि श्री आत्माराम जी ने 'तत्त्वार्थसूत्र-जैनागमसमन्वय' में 'स्थानांग' के "नव सब्भावपयत्था पण्णत्ते, तं जहा-जीवा अजीवा पुण्णं पावो आसवो संवरो निज्जरा बंधो मोक्खो" (९/६६५) इस सूत्र पर आधारित बतलाया है और टिप्पणी में लिखा है
"संक्षेप में सात तत्त्वरूप से वर्णन किये जाने में यह तत्त्व कहलाते हैं और विशेषरूप से वर्णन करने में यह पदार्थ कहलाते हैं। उस समय आस्रव और बन्ध से पाप और पुण्य पृथक् कर लिये जाते हैं। संक्षेप-विवक्षा में पाप और पुण्य का आस्रव और बन्ध में अन्तर्भाव कर दिया गया है। स्थानाङ्ग में विस्तृत कथन होने से नौ पदार्थों का वर्णन किया गया है। किन्तु सूत्रों में संग्रहनय के आश्रित होकर ही संक्षेप से कथन किया गया है। अतः यहाँ सात तत्त्वों का वर्णन है।" (पृ.६)।
इस कथन से यह बात पुष्ट होती है कि श्वेताम्बरागमों में तत्त्वों का विशेष या विस्तृत कथन है और तत्त्वार्थसूत्र में सामान्य या संक्षिप्त कथन।
'तत्त्वार्थसूत्र-जैनागम-समन्वय' में तत्त्वार्थ के सूत्रों का जिन श्वेताम्बरागमों के वाक्यों से साम्य दर्शाया गया है, वे सूत्ररूप न होकर व्याख्यारूप हैं। जैसे द्विविधानि (त.सू.२ / १६) सूत्र का साम्य प्रज्ञापना के निम्नलिखित वाक्यों से प्रदर्शित किया गया है
___ "कईविहा णं भंते! इंदिया पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहादव्विंदिया य भाविदिया य।" (पद १५ / उद्दे. १)।
अनुवाद-"भगवन् ! इन्द्रियाँ कितने प्रकार की बतलायी गयी हैं? गौतम! इन्द्रियाँ दो प्रकार की बतलायी गयी हैं, यथा-द्रव्येन्द्रियाँ और भावेन्द्रियाँ।"
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