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अ०१०/प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २२१
समयसार – जीवणिबद्धा एए॥ ७४॥ मूलाचार - जीवणिबद्धाऽबद्धा॥ ९॥
प्रवचनसार - जो मोहरागदोसे णिहणदि उवलब्भ जोण्हमुवदेसं।
सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण॥ १/८८॥ मूलाचार - अरहंतणमोक्कारं भावेण य जो करेदि पयदमदी।
सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण॥ ५०६॥
समयसार -जीवपरिणामहे, कम्मत्तं पोग्गला परिणमंति।
पोग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि॥ ८०॥ मूलाचार -जीवपरिणामहेदू कम्मत्तण पोग्गला परिणमंति।
ण दु णाणपरिणदो पुण जीवो कम्मं समादियदि॥ ९६९॥
सुत्तपाहुड -सुत्तं हि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुणदि।
__ सूई जहा असुत्ता णासदि सुत्ते सहा णो वि॥ ३॥ सुत्तपाहुड –पुरिसो वि जो ससुत्तो ण विणासइ सो गओ वि संसारे।
सच्चेयणपच्चक्खं णासदि तं सो अदिस्समाणो वि॥ ४॥ मूलाचार -सूई जहा ससुत्ता ण णस्सदि दु पमाददोसेण।
एवं ससुत्तपुरिसो णु णस्सदि तहा पमाददोसेण ॥ ९७३॥
समयसार – वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गईं पत्ते।
वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवली भणियं॥ १॥ मूलाचार -वंदित्तु देवदेवं तिहुअणमहिदं च सव्वसिद्धाणं।
वोच्छामि समयसारं सुण संखेवं जहावुत्तं ॥ ८९४॥ पूर्वोक्त गाथाएँ कुन्दकुन्द के ही ग्रन्थों से मूलाचार में ग्रहण की गई हैं, मूलाचार से कुन्दकुन्द ने ग्रहण नहीं की हैं, यह निम्नलिखित हेतुओं से सिद्ध होता है
१. कुन्दकुन्द ने अपने निम्नलिखित चार ग्रन्थों में एक ही शैली में मंगलाचरण किया है। उस शैली की विशेषता यह है कि चारों मंगलाचरणों में आदि में ‘णमिऊण'
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