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अ०१०/प्र०१
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २०१ (दिगम्बर) परम्परा के ग्रन्थ हैं, इसलिए मूलाचार के कर्ता ने उक्त गाथा में दिगम्बरपरम्परा के ही भगवती-आराधना ग्रन्थ का उल्लेख किया है। यह उल्लेख 'भगवतीआराधना' के 'मूलाचार' से पूर्ववर्ती होने का संकेत करता है।
इस प्रकार उपुर्यक्त सभी विद्वानों ने भगवती-आराधना का रचनाकाल ईसा की प्रथम शताब्दी माना है। किन्तु डॉ० सागरमल जी का कथन है कि भगवती-आराधना में पाँचवी शती ई० से पूर्व के श्वेताम्बर-प्रकीर्णक ग्रन्थों की गाथाएँ मिलती हैं, पाँचवी शताब्दी ई० में विकसित गुणस्थान-सिद्धान्त का उल्लेख है और 'विजहना' (मुनि के शव को जंगल में रख देने) की चर्चा है, जो छठी शती ई० के श्वेताम्बरीय भाष्यग्रन्थों और ७वीं शती ई० के चूर्णि-साहित्य में भी है। अतः भगवती-आराधना इसी समय की रचना है। (जै.ध.या.स./ पृ.१२९-१३०)।
किन्तु प्रकीर्णकों की रचना भगवती-आराधना की रचना के अनन्तर हुई है तथा डॉक्टर सा० की गुणस्थान-सिद्धान्त के विकसित होने की मान्यता कपोलकल्पित है एवं ग्रन्थों के वर्ण्य-विषय की समानता उनके रचनाकाल की समानता का प्रमाण नहीं है, इन तथ्यों का सप्रमाण-सयुक्तिक प्रतिपादन 'भगवती-आराधना' नामक तेरहवें अध्याय में द्रष्टव्य है। अतः डॉक्टर सा० की यह मान्यता मिथ्या है कि भगवती-आराधना की रचना भाष्य और चूर्णियों के रचनाकाल (६-७वीं शती ई०) में हुई है। उपर्युक्त विद्वानों की युक्तियाँ उसे प्रथम शती ई० की रचना सिद्ध करती हैं। २.२. भगवती-आराधना में कुन्दकुन्द की गाथाओं के उदाहरण
ईसा की प्रथम शती के उत्तरार्ध में रचित भगवती-आराधना में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से अनेक गाथाएँ संगृहीत की गयी हैं। निम्नलिखित गाथाएँ तो ज्यों की त्यों पायी जाती हैं
दसणभट्ठा भट्ठा दंसणभट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं। सिझंति चरियभट्ठा सणभट्ठा ण सिझंति॥
बा.अ.१९ / दं.पा.३ / भ.आ. ७३७। जा रायादिणियत्ती मणस्स जाणीहि तम्मणोगुत्ती। अलियादिणियत्तिं वा मोणं वा होइ वचिगुत्ती॥
__ नियमसार ६९ / भ.आ. ११८१ । कायकिरियाणियत्ती काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। हिंसादिणियत्ती वा सरीरगुत्ती हवदि दिट्ठा।
नियमसार ७० / भ.आ. ११८२।
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