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५९० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०७/प्र०५ १४. जिसमें भगवान् महावीर के गर्भापहरण, विवाह आदि का समर्थन हो।
१५. जिस ग्रन्थ के कर्ता के गण, अन्वय आदि यापनीयों से सम्बद्ध हों, और ग्रन्थ भी यापनीयमत का समर्थक हो या विरोधी न हो।
१६. जिसमें क्षुल्लक को श्रावक न मानकर अपवादलिंगधारी मुनि कहा गया
हो।
१७. जिसमें रुग्ण या वृद्ध मुनि के लिए पात्रादि में आहार लाकर देने का उल्लेख हो। (यदि ऐसे उल्लेख से श्रावकों के द्वारा आहार मँगवाकर रुग्ण या वद्ध मुनि को दिलाये जाने की संगति बैठती हो और ग्रन्थ के अन्य सिद्धान्त यापनीयमतविरोधी हों, तो उसे यापनीयग्रन्थ नहीं माना जा सकता, वह दिगम्बरग्रन्थ ही है।) ___यापनीय ग्रन्थ के प्रायः ये ही लक्षण डॉ० सागरमल जी ने भी निर्दिष्ट किये हैं। किन्तु उन्होंने कुछ ऐसे हेतु भी बतलाये हैं, जो यापनीयग्रन्थ के असाधारण धर्म नहीं हैं।१७° उनका यथास्थान निरसन किया जायेगा।
१७०. जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय / पृ. ८१-८२।
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