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५०६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०७/प्र०१ ई० के मुगद लेख में भी यापनीय संघ और कुमुदिगण का संदर्भ मिलता है। यह एक पत्र है, जिसमें बड़े अच्छे स्पष्टीकरण और साधुओं के नामोल्लेख भी हैं, जैसे श्रीकीर्ति गोरवडि, प्रभाशशांक, नयवृत्तिनाथ, एकवीर, महावीर, नरेन्द्रकीर्ति, नागविक्किवृतीन्द्र, निरवद्यकीर्ति भट्टारक, माधवेन्दु, बालचन्द्र, रामचन्द्र, मुनिचन्द्र, रविकीर्ति, कुमारकीर्ति, दामनन्दी, त्रैविद्य गोवर्धन, दामनन्दी, वड्डाचार्य आदि। यद्यपि उपर्युक्त नामों में कुछ कृत्रिम और जाली हैं, फिर भी इनमें से बहुत से साधु बड़े विख्यात और ज्ञान तथा चारित्र के क्षेत्र में अद्वितीय रूप से अत्यधिक प्रसिद्ध थे।९ मोरब (जिला धारवाड) विवरण में यापनीयसंघ के जयकीर्तिदेव के शिष्य नागचन्द्र के समाधिमरण का उल्लेख है, नागचन्द्र के शिष्य कनकशक्ति थे, जो मंत्रचूडामणि के नाम से प्रसिद्ध थे।२० त्रिभुवनमल्ल के शासन में १०९६ ई० के डोनि (जिला धारवाड) विवरण में यापनीयसंघ- वृक्षमूलगण के मुनिचन्द्र विद्य भट्टारक के शिष्य चारुकीर्ति पण्डित को उपवन-दान का उल्लेख है। इस दानपत्र को मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य दायियय्य ने लिपिबद्ध किया था।२१ धर्मपुरी (जिला भिर, महाराष्ट्र) लेख में लिखा है-"नाना प्रकार के करों से प्राप्त आमदनी भगवान् की पूजा तथा साधुओं के भरणपोषण के लिए अनुदानरूप में पोहलकेरे के पञ्चपट्टण, कञ्चुगारस और तेलुंगनगरस द्वारा दी जावे। यह अनुदान यापनीयसंघ और वंदीयूरगण के महावीर पण्डित के सुपुर्द किया गया था, जो वसदि के आचार्य भी थे।२२ ११वीं सदी के रामलिङ्ग-मंदिर के कलभावीलेख में पश्चिमी गंगवंश के शिवमार का उल्लेख है। शिवमार ने कुमुदवाड नामक ग्राम जैनमंदिर को दान दिया था, जिसे स्वयं ने निर्मित कराया था, और इसे मइलायान्वय कारेयगण (जो यापनीयसंघ से सम्बन्धित है, ऐसा बइलहोंगल विवरण में लिखा है) के गुरु देवकीर्ति के सुपुर्द किया था। इनके पूर्वाचार्यों में शुभकीर्ति, जिनचन्द्र, नागचन्द्र और गुणकीर्ति आदि आचार्यों का भी उल्लेख है।२३ (पृ.२४७-२४८)।
"११०८ ई० में बल्लालदेव और गण्डरादित्य (कोल्हापुर के शिलाहारवंशीय) के समय में मूलसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगण की आर्यिका रात्रिमती-कन्ति की शिष्या बम्मगवुड ने मंदिर बनवाया था, जिसके लिए अनुदान का उल्लेख होन्नुर-लेख में विद्यमान है।२४ बइलहोंगल (जिला बेलगाँव) का लेख चालुक्यवंशीय त्रिभुवनमल्लदेव के समय का
१९. S,I.I. XII, No. 78, Madras 1940. २०. A.R. S.I.E. 1928-29, No. 239 p. 56. २१. S.I.I.II, iii No. 140. २२. A.R.S.I.E. 1961- 62 B 460-61. २३. I.A.XVIII P. 309, Also P.B. Desai Ibidem p. 115. २४. I.A. NII , p. 102. (जै.शि.सं. / मा.च/ भा.२ / ले.क्र.२५०)।
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