________________
यापनीयसंघ का इतिहास / ५०३
अ० ७ / प्र० १
मुनिजीवन को शक्य और सुख-सुविधामय बनाना था। इस प्रकार श्वेताम्बर साधुओं ने ही यापनीयसंघ की नींव डाली थी ।
८
बोटिक शिवभूति के गुरु श्वेताम्बर
बोटिककथा में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि शिवभूति के गुरु आर्यकृष्ण स्थविरकल्पी साधु अर्थात् निरपवाद-सचेलमार्गी श्वेताम्बरसाधु थे। शिवभूति उनसे स्थविरकल्प की अर्थात् श्वेताम्बरी दीक्षा ग्रहण करता है, किन्तु कुछ समय बाद जिनकल्प धारण करने पर तुल जाता है। तब गुरु उसे समझाते हैं कि जिनकल्प का व्युच्छेद हो चुका है, अब किसी में भी उसके आचरण की क्षमता नहीं है । किन्तु शिवभूति गुरु के उपदेश की अवहेलना कर नग्न साधु बन जाता है।
बोटिककथा के इस तथ्य को मुनि कल्याणविजय जी, आचार्य हस्तीमल जी, पं० दलसुखभाई मालवणिया, डॉ० सागरमल जी आदि सभी श्वेताम्बर मुनियों एवं विद्वानों ने स्वीकार किया है। अतः जो मुनि एवं विद्वान् यह मानते हैं कि बोटिक शिवभूति ने यापनीयमत चलाया था, उनकी मान्यतानुसार भी यह सिद्ध होता है कि यापनीयमत का प्रवर्तक श्वेताम्बर साधु था, अतः श्वेताम्बरमत से ही यापनीयमत की उत्पत्ति हुई थी।
उत्पत्तिस्थान : दक्षिण भारत
डॉ. सागरमल जी का यह कथन भी समीचीन नहीं है कि यापनीय-सम्प्रदाय का जन्म दक्षिण में न होकर उत्तर में हुआ था, क्योंकि यह मत भी बोटिकों को यापनीय मान लेने की भ्रान्ति से प्रसूत है । जब यह सिद्ध किया जा चुका है उत्तरभारतीय बोटिक यापनीय नहीं थे, तब यह स्वयं सिद्ध हो जाता है कि यापनीयों की उत्पत्ति उत्तरभारत में नहीं हुई थी। इसके अतिरिक्त हरिषेण, देवसेन और रत्ननन्दी, तीनों आचार्यों के साहित्यिक साक्ष्य कह रहे हैं कि यापनीय - सम्प्रदाय का जन्म दक्षिणभारत में हुआ था, तो इसके विरुद्ध प्रमाण मिले बिना इसे अप्रामाणिक कैसे माना जा सकता है ?
शिलालेखीय प्रमाणों से भी यही सिद्ध होता है। जैन शिलालेख संग्रह ( मा.चं.) के तृतीय भाग की प्रस्तावना में यापनीयसंघ का परिचय देते हुए डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी ने कहा है कि "यह संघ दक्षिण भारत की अपनी देन है।" (पृ.२५) । यापनीयसंघ का उल्लेख करनेवाले जितने भी शिलालेख हैं, वे सब दक्षिणभारत में ही उपलब्ध हुए हैं, यह तथ्य यापनीयसंघ की दक्षिणभारत में उत्पत्ति का प्रबल प्रमाण है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org