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४३६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०५/प्र०४ आठ वर्ष बाद सन् २००४ में लिखे गये अपने दूसरे ग्रन्थ जैनधर्म की ऐतिहासिक विकासयात्रा में भी उन्होंने इन्हें दुहराया है। यथा
"दक्षिण में गया निर्ग्रन्थसंघ अपने साथ विपुल प्राकृत-जैनसाहित्य तो नहीं ले जा सका, क्योंकि उस काल तक जैनसाहित्य के अनेक ग्रन्थों की रचना ही नहीं हो पायी थी। वह अपने साथ श्रुतपरम्परा से कुछ दार्शनिक विचारों एवं महावीर के कठोर आचारमार्ग को ही लेकर चला था, जिसे उसने बहुत काल तक सुरक्षित रखा। आज की दिगम्बरपरम्परा का पूर्वज यही दक्षिणी अचेल निर्ग्रन्थसंघ है।" (पृ.२६)।
ईसा की पाँचवीं शताब्दी (४७९ ई०) में ही उत्कीर्ण किये गये पहाड़पुर-ताम्रपत्रलेख में पञ्चस्तूपनिकाय के श्रमणों को 'निर्ग्रन्थ' कहा गया है।७३ निर्ग्रन्थसंघ मूलसंघ के नाम से भी प्रसिद्ध रहा है। प्राग्गुप्तकालीन (संभवतः ३७० ई० में अभिलिखित) नोणमंगल के ताम्रपत्र-लेख में कहा गया है कि महाधिराज माधववर्मा ने पेब्बोलल् ग्राम में मूलसंघ द्वारा निर्मित अर्हदायतन (जिनमन्दिर) को भूमि और कुमारपुर गाँव दान में दिया था। मूलपाठ इस प्रकार है
"श्रीमता माधववर्म-महाधिराजेन --- पेब्बोलल्-ग्रामे अर्हदायतनाय मूलसङ्घानुष्ठिताय महातटाकस्य अधस्तात् द्वादशखण्डुकावापमात्र-क्षेत्रं च तोट्टक्षेत्रं च पटुक्षेत्रं च कुमारपुर-ग्रामश्च --- दत्तः।" (जै.शि.सं. / मा.चं/ भा.२/ ले.क्र.९०)।
__माधववर्म-महाधिराज के पुत्र कोङ्गणिवर्म-धर्ममहाधिराज ने भी गुप्तकाल से पूर्व संभवतः ई० सन् ४२५ के लगभग मूलसंघ के आचार्य चन्द्रनन्दी आदि द्वारा प्रतिष्ठापित उरनूर के जैनमंदिर को वेन्नैल्करनि गाँव दान में दिया था, जिसका उल्लेख नोणमंगल ग्राम में उपलब्ध ताम्रपत्रों पर मिलता है यथा
"श्रीमता कोङ्गणिवर्म-धर्म-महाधिराजेन आत्मनः श्रेयसे --- चन्द्रनन्द्याचार्यप्रमुखेन मूलसङ्घनानुष्ठिताय उरनूरार्हतायतनाय --- वेन्नैल्करनिग्रामः --- दत्तः।" (जै.शि.सं./ मा.च./ भा.२ / ले.क्र. ९४)।
___ इन शिलालेखीय प्रमाणों से दिगम्बरंजैन-परम्परा ईसापूर्व तीसरी शताब्दी से भी प्राचीन सिद्ध होती है। अतः इस परम्परा को प्रथम शताब्दी ई० (वीर नि० सं० ६०९) में अथवा विक्रम की छठी शती में उत्पन्न बतलानेवाले बोटिक-कथावादी श्वेताम्बराचार्यों एवं मुनि कल्याणविजय जी के वचन इन प्रमाणों से भी कपोलकल्पित सिद्ध होते हैं।
७३. देखिए , द्वितीय अध्याय के षष्ठ प्रकरण में ताम्रपत्रलेख का मूलपाठ।
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