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अ०४/प्र०२
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / ३५५ दिगम्बरजैनमत को अर्वाचीन सिद्ध करने के लिए कल्पित किये गये पूर्वोक्त समस्त मिथ्यामत धराशायी हो जाते हैं, उनके कपोलकल्पित होने का यथार्थ प्रकट हो जाता है और दिगम्बरजैन-परम्परा की अतिप्राचीनता का सूर्य काल्पनिक मतों की घटाओं से मुक्त होकर चमकने लगता है।
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