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________________ अ०४/प्र०२ जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / ३२९ तुलना करने पर हम पाते हैं कि निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक और अचेल कस्सप दोनों के द्वारा वर्णित आचार शब्दशः साम्य रखते हैं। अतः अचेल कस्सप द्वारा वर्णित आचार भी आजीविक साधुओं का ही है। बाबू कामताप्रसाद जी ने इसे निर्ग्रन्थों का आचार बतलाया है, जिसका मुनि श्री कल्याणविजय जी ने खण्डन किया है। वे लिखते हैं "मज्झिमनिकाय में साफ-साफ लिखा गया है कि ये आचार आजीविकसंघ के नायक गोशालक तथा उनके मित्र नन्दवच्छ और किस्ससंकिच्च के हैं जिनका बुद्ध के समक्ष निग्गंथश्रमण सच्चक ने वर्णन किया है।" (श्र.भ.म. / पृ. ३३१)। यद्यपि बाबू कामताप्रसाद जी ने निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक द्वारा वर्णित आचार को नहीं, अपितु अचेल कस्सप द्वारा वर्णित आचार को निर्ग्रन्थ मुनियों का आचार कहा है,८६ तथापि वह आजीविक साधुओं का ही आचार है, जैसाकि ऊपर दर्शाये गये साम्य से स्पष्ट है। इसीलिए, मुनि जी का उसे आजीविकसंघ के साधुओं का आचार कहना उचित ही है। किन्तु मुनि जी का यह कथन युक्तिसंगत नहीं है कि "यदि निर्ग्रन्थ जैन श्रमण सच्चक स्वयं अचेलक और हाथ में भोजन करनेवाला होता तो, वह आजीविक भिक्षुओं का 'हाथ चाटनेवाला' आदि कहकर उपहास कभी न करता। इससे भी जाना जाता है कि महावीर के साधु वस्त्रपात्र अवश्य रखते थे।" (अ.भ.म. / पृ.३२३)। मुनि जी का यह कथन प्रत्यक्षप्रमाण से बाधित है, क्योंकि अचेल कस्सप ('अचेलो कस्सपो'–पा.टि.८३) ने अचेलक होते हुए भी अचेलक आजीविकों को 'हाथ चाटने वाला' आदि कहा है। इससे द्योतित होता है कि अचेल कस्सप यद्यपि स्वयं अचेलक थे, और पाणितलभोजी भी थे, तथापि भोजन के अनन्तर वे हाथ नहीं चाटते थे, न स्वच्छन्द आचरण करते थे और न ही वे उन साधुओं में से थे, जो कभी-कभी पन्द्रह-पन्द्रह दिनों तक भोजन नहीं करते थे, किन्तु कभी-कभी खाद्य, स्वाद्य, भोज्य और पेय पदार्थों का अतिगृध्रता से सेवन करते थे। निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक और अचेल कस्सप ने आजीविकों की इन्हीं अशोभनीय प्रवृत्तियों को अनुचित बतलाया है, अचेलत्व और पाणितलभोजित्व को नहीं। अतः आजीवक साधुओं की उक्त अशोभनीय और लोलुपतापूर्ण प्रवृत्तियों को दर्शाने से निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक और अचेल कस्सप का सचेल श्वेताम्बर-साधु होना सिद्ध नहीं होता। चूँकि दोनों ने आजीवकों के अशोभनीय और लोलुपतापूर्ण आचार का वर्णन किया है, इससे सिद्ध होता है कि वे एक ही सम्प्रदाय के थे। अचेल कस्सप तो निर्ग्रन्थसम्प्रदाय के नग्न साधु ही थे, निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक ८६. भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध/पृ.६१। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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