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अ० ४ / प्र० २
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / ३२७ चाटते हैं।८१ वे बुलाकर दी गई भिक्षा नहीं लेते, 'ठहरिये' कहकर दी गई भिक्षा नहीं लेते, दूसरे के द्वारा लायी गयी भिक्षा नहीं लेते, अपने उद्देश्य से बनाई गई भिक्षा नहीं लेते, निमंत्रित करके दी गई भिक्षा नहीं लेते, हाँड़ी से उड़ेलकर दी गई भिक्षा नहीं लेते, कड़ाही से उड़ेलकर दी गई भिक्षा नहीं लेते, दो पटरों, दो दण्डों और दो मूसलों के बीच से लायी गयी भिक्षा नहीं लेते, भोजन करते हुए दो व्यक्तियों के बीच से लायी गयी भिक्षा नहीं लेते, गर्भिणी और दूध पिलाती हुई स्त्री से भिक्षा नहीं लेते, दो पुरुषों के बीच से आती हुई स्त्री से भिक्षा ग्रहण नहीं करते, चन्दा करके भिक्षा देनेवाली स्त्रियों (सङ्कित्तीस ) से भिक्षा नहीं लेते, जहाँ कुत्ता ( सा= श्वा) खड़ा होता है, वहाँ से भिक्षा नहीं लेतें, जहाँ मक्खियाँ भिनभिना रही हों, वहाँ से भिक्षा नहीं लेते, मांस-मछली, सुरा, मैरेय और तुषोदक ( चावल से बनी शराब) ग्रहण नहीं करते। वे एक ही घर से भिक्षा लेते हैं या एक ही ग्रास खाते हैं, दो घरों से भिक्षा लेते हैं या दो ग्रास खाते हैं, सात घरों से भिक्षा लेते हैं या सात ग्रास खाते हैं। वे एक कलछुल - भिक्षा से भी निर्वाह कर लेते हैं, दो कलछुल - भिक्षा से भी और सात कलछुल - भिक्षा से भी । वे एक दिन में एक बार भी आहार करते हैं, दो दिन में एक बार भी और सात दिन में एक बार भी । कभी-कभी पन्द्रहपन्द्रह दिनों के बाद भी आहार लेते हैं । "
गौतम बुद्ध पूछते हैं - " हे अग्निवेश ! क्या इतने से ही उनका निर्वाह हो जाता है ?
सच्चक उत्तर देता है - " ऐसा नहीं है गौतम ! वे कभी-कभी प्रभूतमात्रा ८२ में खाद्य पदार्थ खाते हैं, प्रभूतमात्रा में भोज्य पदार्थों का भोजन करते हैं, प्रभूतमात्रा में स्वाद्य पदार्थों का स्वाद लेते हैं और प्रभूतमात्रा में पेय पदार्थों का पान करते हैं। इससे उनके शरीर की शक्ति बढ़ती रहती है, वे पुष्ट एवं बलवान् होते रहते हैं ।
गौतम कहते हैं—“ यह तो पहले त्याग करना और फिर ग्रहण करना है। इस तरह तो शरीर कभी दुबला और कभी मोटा हो जाता है। " ( अनुवादक : स्वामी द्वारिकादास शास्त्री) । इस आचार को निर्ग्रन्थपुत्र सच्चक ने स्पष्टशब्दों में नन्द वत्स, कुश सांकृत्य और मक्खलि गोशाल का आचार बतलाया है, जो आजीविक-सम्प्रदाय के थे।
८१. हत्थापलेखना = भोजन के बाद हाथ चाटना (पालि - हिन्दी कोश ) । ८२. उळारानि - उळारानि ( उदाराणि - उदाराणि) = प्रभूत मात्रा में (पालि - हिन्दी कोश ) ।
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