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अ०४/प्र०१
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / ३०३ ५."तामिल भाषा में आजीविक शब्द का अर्थ 'दिगम्बर' करने से भी आजीविक और दिगम्बरजैन एक नहीं हो सकते, क्योंकि उस प्रदेश में आजीविकों का अधिक प्रचार था और वे निरन्तर नग्न ही रहते थे, इस कारण वे वहाँ दिगम्बर भी कहलाते होंगे। परन्तु इस शब्दार्थ मात्र से दिगम्बरजैन और आजीविक अभिन्न सिद्ध नहीं हो सकते। नग्न रहने से हर कोई दिगम्बर कहा जा सकता है, पर इससे वह दिगम्बरजैन ही है यह मान लेना युक्तिसंगत नहीं।
६."शीलांकाचार्य ने 'आजीविक' का पर्याय "दिगम्बर' किया तो इससे भी उनकी नग्नता मात्र प्रकट होती है, न कि दिगम्बरजैनों से अभिन्नता।
___७."हलायुध ने अभिधानरत्नमाला में दिगम्बरजैनों को आजीविक कह दिया, इससे भी वे अभिन्न सिद्ध नहीं किये जा सकते। कोषकार कुछ प्रामाणिक इतिहासकार नहीं होते कि वे जो कुछ लिखें प्रमाणसिद्ध ही लिखें। अपने समय में जिस शब्द का जो अर्थ किया जाता हो, उसे उस अर्थ में लिख देना, इतना ही कोषकारों का कर्तव्य होता है। हलायुध के समय में दिगम्बरजैनों को जैनेतर लोग आजीविक नाम से भी पहचानते होंगे, इस कारण कोषकार ने उन्हें आजीविक भी लिख दिया, पर इतने ही से वे आजीविक नहीं हो सकते।
"ऊपर हमने देखा कि डॉ० हानले के दिये हुए प्रमाणों में एक भी प्रमाण ऐसा नहीं, जो दिगम्बरजैनों को ही आजीविक अथवा त्रैराशिक सिद्ध कर सके। इसके अतिरिक्त दिगम्बरों को त्रैराशिक मानने में किसी प्रकार की दार्शनिकमान्यता-विषयक सादृश्य भी नहीं है। यदि दिगम्बरजैन ही त्रैराशिक होते, तो इनमें भी सत्, असत्, सदसत्, नित्य, अनित्य, नित्यानित्य इत्यादि त्रैराशिक-सम्मत तीन राशि की और तीन नय की मान्यता होती, पर ऐसा कुछ भी नहीं है। (अ.भ.म./ पृ.२७६-२७८)।
"श्वेताम्बर-जैनसंघ के अनेक नये-पुराने ग्रन्थों में दिगम्बर-सम्प्रदाय का उल्लेख और वर्णन है, पर कहीं भी इनको श्वेताम्बरों ने 'आजीविक' अथवा 'त्रैराशिक' नहीं कहा। भाष्यों और चूर्णियों में सर्वत्र इनको 'बोडिय' (बोटिक) इस नाम से व्यवहृत किया है। दसवीं सदी के बाद के ग्रन्थों में आशाम्बर, दिगम्बर, दिक्पट इत्यादि नामों का इनके लिये प्रयोग हुआ है। कहीं भी आजीविक अथवा त्रैराशिक ये शब्द दिगम्बरजैनों के लिए प्रयुक्त नहीं हुए। यदि वे एक होते, तो सबसे पहले श्वेताम्बरजैन ही उनको गोशालक-शिष्य कहकर तिरस्कृत करते, क्योंकि उनके सबसे अधिक निकटवर्ती वे ही थे। पर वैसा कहीं भी उल्लेख नहीं किया। इसके विपरीत श्वेताम्बर ग्रन्थकारों ने दिगम्बर और आजीविकों का भिन्न-भिन्न उल्लेख किया है। उदाहरण के तौर पर हम यहाँ ओघनियुक्ति-भाष्य की एक गाथा का अवतरण देंगे, जिसमें आजीविक और दिगम्बरों का अलग-अलग उल्लेख है।
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