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________________ [दस] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ तृतीय प्रकरण-उत्तरभारतीय सचेलाचेल निर्ग्रन्थसंघ कपोलकल्पित १. अचेल-सचेल दोनों लिंगों से मुक्ति के उपदेश की कल्पना २. उक्त कपोलकल्पना द्वारा अनेक प्रयोजनों की सिद्धि का प्रयास ८३ ३. कपोलकल्पित होने के शास्त्रीय प्रमाण ३.१. भगवान् महावीर का निर्ग्रन्थसंघ सर्वथा अचेलमार्गी ३.२. महावीरप्रणीत जिनकल्प-स्थविरकल्प दोनों सर्वथा अचेल ३.३. श्वेताम्बरमान्य जिनकल्प और स्थविरकल्प दोनों सचेल . ३.३.१. जिनकल्पी भी सचेल और अनग्न ३.३.२. श्वेताम्बर-जिनकल्पिकों का नग्न रहना असंभव ३.३.३. श्वेताम्बर-जिनकल्पिकों का नग्नत्व औचित्यविहीन ३.३.४. वस्त्रलब्धिमान् जिनकल्पिक नाममात्र से अचेल ३.४. आचारांगवर्णित अचेलत्व अव्यवहत ३.५. जिनकल्प के व्युच्छेद की घोषणा ३.६. आर्य महागिरि का जिनकल्प दिगम्बरपरम्परा का जिनलिंग ३.७. सचेल जिनकल्प कपोलकल्पित ३.८. अचेलत्व की 'जिनकल्प' संज्ञा स्वकल्पित ३.९. जिनकल्प-नामकरण के प्रयोजन ३.१०. जिनकल्प-नामकरण के प्रयोजन ही विच्छेद-घोषणा के - प्रयोजन १०४ ३.११. अचेलत्व के आचरण का विच्छेद नहीं, परित्याग 0 निष्कर्ष ४. कपोलकल्पित होने के ऐतिहासिक प्रमाण १०७ ५. डॉक्टर सा० के मत में परिवर्तन - महावीर के निर्ग्रन्थसंघ का सर्वथा अचेल होना मान्य १०९ - अचेल-निर्ग्रन्थसंघ से सचेल-श्वेताम्बरसंघ का उद्भव मान्य १०९ - श्वेताम्बरसंघ से यापनीयसंघ की उत्पत्ति स्वीकार्य चतुर्थ प्रकरण-सचेलाचेल-संघ से श्वेताम्बर-यापनीयों के उद्भव की मान्यता कपोलकल्पित ११२ १. उक्त कपोलकल्पना का महत्त्वपूर्ण प्रयोजन ११२ २. कपोलकल्पितता के प्रमाण १०६ १०६ १०९ १०९ ११३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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