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सादर समर्पण,
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विश्वहित-बोधिदायक- गुरुवर्य श्रीअमीविजयपादाः
पूज्यश्री ! आपनेही मेरे को गृहस्थावस्था में महामंत्र - श्री पंचपरमेष्ठि- नमस्कारमन का जापक बनाकर उदयवंत किया. गृहस्थावस्था में भी जैन स्याद्वादशैली से वंचित न रहूं इस लिए पैंतीस बोलका थोकडा उर्दू में सिखाया. आपनेही मेरे आत्महितचिंतक बन कर उपमितिभवप्रपंचाकथा का हिन्दी रूपांतर वांचने के लिए मेरे को उद्यत किया. आपनेही मेरी पालिका मातामही की सेवा करनी मेरे को सिखाई. सुरुचिपूर्वक तैयार करके दीक्षित भी आपनेही किया. मिथ्यामति पण्डितो को न सौंप कर शुद्ध शिक्षित भी आपनेही बनाया. सकल विद्या में प्रवेश करने के लिए कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वर को शरण्य स्वीकारना आपनेही सिखाया. महोपाध्याय श्रीविनयविजयजी महाराज आदि महापुरुषो के प्रति सुरुचि आपनेही प्रयत्नपूर्वक मेरे हृदय में उत्पन्न करी. इत्यादि अगणित उपकारों के भार से दबे हुए, आप ही के शुभ प्रयत्नों द्वारा किंचिज्ज्ञ बने हुए इस सेवक के इस प्रारंभिक प्रयत्न को दिव्य दृष्टि बरसाते हुए स्वीकार करने की कृपा कीजिए.
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चरणसेवक
उपाध्याय क्षमाविजय गणी.
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