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________________ इस ग्रन्थभंडार में उपाध्यायजीको हैमप्रकाशकी एक सुवाच्य और शुद्ध प्रति संवत् १७४३ की लिखी हुई मिली. इसको, और साथही हैमप्रकाशके अभ्यासियोंको अत्यन्त उपयोगी जानकर दोनो टीकाओंके साथ अप्रकाशित हैमलिंगानुशासनकोभी प्रकट करनेकी प्रेरणा की. ऐसे अप्रकाशित अमूल्य ग्रन्थों का प्रकाशन सम्यग्ज्ञानके प्रचार और संवर्धनमें अत्यन्त उपयोगी होगा ऐसा जानकर सन्माननीय ट्रस्टीयोंकी शुभ संगति से यह ग्रंथ हमने प्रकट किये हैं. इस ग्रंथकी विक्रीसे जो रकम आयगी वह उपर्युक्त ज्ञानखाते में जमा की जायगी. वीलकी शर्त के अनुसार सम्यग्ज्ञानका प्रचार और संवर्धन में इसका उपयोग होगा. ग्रन्थ प्रकाशनका काम बाहिरसे जितना सीधा लगता है उतना सीधा नहीं है. किंतु बहोत कठिन है. पुस्तकोंके प्रकाशनके लिये हस्तलिखित प्रतियोंका संग्रह करना, उनका मिलान करके प्रामाणिक प्रतियोंसे शुद्ध पाठका निर्णय करना, अन्य प्रतियोंके आधारसे सुधारना, संशयास्पद और गहन स्थलों का वाचकोंको सरल होवे इसके लिये टिप्पन लगाना, इन सब कामों में समय शक्ति और तुलनात्मक बुद्धी जितनी खर्च होवें उतनी थोडी है. और प्रैसमेंसे आये हुए प्रुफोंके संशोधनका कार्य और भी कठिन है. जिस किसीने छोटे या बडे ग्रंथके संशोधनका काम किया हो वोही इस परिश्रमको जान सकता है. प्रकाशनसंबंधी ये सब कठिनाइयाँ परमोपकारी क्षमाविजयजी महाराजने उठाई हैं, इसके लिए मैं उनका बडा आभारी हूं. आपने अस्वस्थ होते हुए भी अनेक ग्रन्थोंका आलोडन करके यह व्याकरण जैसा गूढ और गहन विषय अभ्यासियोंके लिए सरल और रसप्रद हो जावे ऐसी व्यवस्थित रीतिसे और सूक्ष्मदृष्टिसे प्रूफोंका संशोधनमें जो मेहनत की है वह इसके पाठकही समझ सकेंगे. हमारे कुटुंब अनन्य उपकारक और अनेक आत्माओं को धर्ममार्ग में लगानेवाले पूज्य अमीविजय महाराज तथा मेरे स्वर्गीय पिताके जीवनका परिचय कराके यत्किंचित् ऋणमुक्त होना चाहता हूं. इसी वजह से यह ग्रंथमाला मेरे दोनो पूज्योंके नामसे निकाली है, जिसका यह ग्रन्थ प्रथम पुष्प है. इन दोनों ग्रंथोंकी महत्ता वाचकोंको ग्रंथ हाथमें लेतेही मालुम होवे इसके लिए उनका संक्षिप्त परिचय अलायदा दिया जाता है. आश्विनशुक्ल सप्तमी सं. १९९३ Jain Education International } For Personal & Private Use Only भवदीय, हीरालाल सोमचन्द. www.jainelibrary.org
SR No.004040
Book TitleHaim Prakash Maha Vyakaranam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamavijay
PublisherHiralal Somchand Kot Mumbai
Publication Year1937
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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