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________________ प्रकाशकका वक्तव्य. महोपाध्याय श्रीविनयविजयगणिकृत श्रीहैमप्रकाश प्रसिद्ध करते हुए हमें अत्यन्त आनंद होता है. महोपाध्याय श्रीविनयविजयजी महाराजकृत यह ग्रंथ कलिकालसर्वज्ञ भगवान् श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराजके महान् व्याकरण "श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासन" की प्रक्रियारूप में रची हुई सुबोध, सरल और सुविस्तृत टीका है. व्याकरण यह साहित्यशास्त्रका मुख्य अंग है. विचारोंकी विपुलता होते हुए भी व्याकरणके नियमौके विना जाने उच्चारण करनेसे अथवा लिखनेसे विचारशील पुरुष भी हंसीके पात्र होते हैं. इस लिए व्याकरणके विषयकी जानकारी अति जरूरी है. इसीसे यह व्याकरण विषयका महाग्रंथ महोपाध्याय श्री विनयविजयजी महाराजने सिद्धहेमशब्दानुशासन आदि अनेक व्याकरणोंका साररूप रचके संस्कृतवाणी के अभ्यासकी इच्छा रखनेवाले जिज्ञासुओंपर बहोत ही उपकार किया है. पूज्य विनयविजय महाराजकृत यह ग्रंथ बडा उपयोगी होनेपर भी अभीतक अप्रकाशित था इसलीए समर्थ विद्वान् उपाध्यायजी महाराज श्रीमद् क्षमाविजयजी महाराजने इस ग्रंथका सुसंपादन किया है. और उसके प्रचार के लिए उपदेश दिया है. इसके प्रकाशन के लीए मेरे स्वर्गीय पिताके सन्मान्य ट्रस्टी शेठ नगीनदास करमचंद संघवी, शेठ देवकरण खुशाल वेरावळवाला और मेरी परमपूज्य गंगास्वरूप मातुश्री कस्तुरावंती बाईनें वसियतनामा में लिखी हुई शर्तके अनुसार सम्यग्ज्ञानका संवर्धन और संरक्षण के लिये जुदी रखी हुई भारी रकममेसे खर्चनेकी संमति दी इसके लिए मैं ट्रस्टीयोंका आभारी हूं. उपाध्याय क्षमाविजयजीकी स्तुत्य प्रवृत्तियोंसे सारी जैनजनता जानकार है. इतनी छोटी उमर में प्राप्त की हुई विद्वत्ता, प्रभावशाली वक्तृत्वशक्ति और उनके साथ अत्युत्तम चारित्र्य केवल प्रशंसनीय ही नहीं किंतु अनुकरणीय है ! जन्मसे पंजाबी होते हुएभी गर्वी गुजराती भाषा ऊपर इनका पूर्ण अधिकार है. इनके गुरु पूज्यपाद सन्मार्गोपदेष्टा श्रीमद् अमीविजयजी महाराजके पास अभ्यासके समय इनको सिद्धमशब्दानुशासनके पढनेवालोंके लिए महामहोपाध्याय विनयविजयजीकृत है मलघुप्रक्रियाकी अत्युपयोगिता मालुम हुई और उसकी स्वोपज्ञ टीका देखनेकी उत्सुकता हुई. उसकी (हैमप्रकाश ) एक प्रति अमदाबाद के जैन विद्याशाला के भंडार में प्राप्त हुई और उसके आधार से संशोधन करनेका विचार किया. यह काम चालू था ही, इस बीच में हमारे भाग्योदयसे उपाध्यायजीका चातुर्मास बम्बई में ही हुवा; और मेरे प्रार्थना करनेपर हमारे पूज्य पिताजीके संग्रह किये ज्ञानभंडारको देखनेके लिए उपाध्याय महाराज पधारे. हमारे स्वर्गीय पिताश्रीनें पूज्यपाद अमीविजयजी महाराजके सदुपदेशसे और सम्यग्ज्ञान के प्रचारकी भावनासे यह ग्रन्थभंडार संग्रह किया है, और अपने देहावसान के समय किये हुए वसीयतनामा में स्टीयोंको प्रन्थभंडारकी उचित व्यवस्था करनेका काम सोंपने में आया है. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004040
Book TitleHaim Prakash Maha Vyakaranam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamavijay
PublisherHiralal Somchand Kot Mumbai
Publication Year1937
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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