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________________ विषयपरिचय : निक्षेपमीमांसा प्रकारके निक्षेप बताये हैं। यद्यपि निक्षेपोंके संभाव्य भेद अनेक हो सकते है और कुछ ग्रन्थकारोंने किये भी हैं परन्तु कमसे कम नाम स्थापना द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपोंको माननेमें सर्वसम्मति है। पदार्थोंका इस प्रकारका निक्षेप प्राचीनकालमें अत्यन्त आवश्यक माना जाता था। आ० यतिवृषभ' लिखते हैं किजो प्रमाण नय और निक्षेपसे पदार्थकी ठीक समीक्षा नहीं करता उसे युक्त भी अयुक्त और अयुक्त भी युक्त प्रतिभासित होता है। धवला में तो और स्पष्ट लिखा है कि निक्षेपके बिना किया जानेबाला निरूपण वक्ता और श्रोता दोनोंको कुमार्गमें ले जा सकता है। आ० पूज्यपाद'ने निक्षेपका प्रयोजन बताते हुए लिखा है कि "स किमर्थः अप्रकृतनिराकरणाय प्रकृतनिरूपणाय च" अर्थात् अप्रकृतके निराकरणके लिये और प्रकृतका निरूपण करनेके लिये निक्षेपकी सार्थकता है । धवला (पु० १) में निक्षेपका प्रयोजन बतानेवाली यह प्राचीनगाथा उद्धृत है "उक्तं हि-अवगयणिवारणटुं पयदस्स परूवणाणिमित्तं च । संसयविणासणटुं तञ्चत्थवधारणटुं च ॥" अप्रकृतके निराकरण प्रकृतके प्ररूपण संशयके विनाश और तत्त्वार्थके निश्चयके लिये निक्षेपकी सार्थकता है। वहीं इसका विशेष विवरण करते हुए लिखा है कि यदि श्रोता अव्युत्पन्न है और पर्यायार्थिक दृष्टिवाला है तो अप्रकृतके निराकरणके लिये तथा यदि द्रव्यार्थिक दृष्टिवाला है तो प्रकृतके निरूपणके लिये निक्षेप करना चाहिए। श्रोताको यदि पूर्ण विद्वान् या एकदेशज्ञानी होकर भी तत्त्वमें सन्देह है तो सन्देह निवारणके लिये, यदि तत्त्वमें विपर्यास है तो तत्त्वार्थके निश्चय के लिये निक्षेपकी आवश्यकता है। अकलङ्कदेवने निक्षेपोंका विवेचन करते हुए लिखा है कि "नयानुगतनिक्षेपैरुपायैर्भेदवेदने। विरचय्यार्थवाक्प्रत्ययात्मभेदान् श्रुतार्पितान् ॥" अर्थात् निक्षेप पदार्थोंके विश्लेषणके उपायभूत हैं। उन्हें नयों द्वारा ठीक-ठीक समझकर अर्थात्मक ज्ञानात्मक और शब्दात्मक भेदोंकी रचना करनी चाहिए। इस वर्णनसे इतना स्पष्ट हो जाता है कि अकलङ्कदेव विशेष रूपसे समन्तभद्रक' द्वारा प्रतिपादित बुद्धि शब्द और अर्थ रूपसे पदार्थक विश्लेषणकी ओर ध्यान दिला रहे हैं; क्योंकि तीनों प्रकारके अर्थोंमें ज्ञान एक जैसा ही होता है। सिद्धिविनिश्चय (१२।१) में निक्षेपको अनन्त प्रकारका बतलाकर भी उसके चार मुख्य भेद वही कहे हैं जो तत्त्वार्थसूत्र (१२५) में निर्दिष्ट हैं। वे हैं नाम-स्थापना द्रव्य और भाव । द्रव्य जाति गुण क्रिया और परिभाषा ये शब्दप्रवृत्तिके निमित्त होते हैं। इनमेंसे किसी निमित्तकी अपेक्षा न करके इच्छानुसार वस्तुकी जो चाहे संज्ञा रखना नाम निक्षेप है। यह अनेक प्रकारका है । यथा व्यस्त जीवविषयक नाम-जैसे यह देवदत्त है। समस्त जीव विषयक नाम-जैसे ये सब गर्ग आदि हैं। एक जीव विषयक नाम-जैसे आदिनाथ । अनेक जीवविषयक नाम-जैसे यह डित्थ यह डवित्थ यह जिनदत्त आदि । व्यस्त अजीव विषयक नाम-जैसे व्याकरणमें समासकी 'स' संज्ञा । समस्त अजीवविषयक नामजैसे व्याकरणमें भू आदि धातुओंकी 'धु' संज्ञा । एक अजीव विषयक नाम-जैसे आकाश काल आदि संज्ञाएँ । अनेक अजीव विषयक नाम-जैसे व्याकरणमें शतृ और शानच प्रत्ययोंकी 'सत्' यह संज्ञा । जाति गुण आदिके निमित्तसे किया जानेवाला शब्दव्यवहार नाम निक्षेपकी मर्यादामें नहीं आता। अनन्तवीर्या (१) त्रिलोक प्र० ११८२। (२) पुस्तक : पृ० ३१ । (३) सर्वार्थसि. १५। (४) लघी० स्ववृ० श्लो० ७४ । (५) "बुद्धिशब्दार्थसंज्ञास्ताः तिस्रो बुद्धयादिवाचकाः ।"-आप्तमी० श्लो० ८५ । (६) त० श्लो० पृ० १११। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004038
Book TitleSiddhi Vinischay Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnantviryacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages686
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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