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________________ ( 6 ) (६) हरिभद्रसूरि का 'अकलङ्क न्याय' उल्लेख ... ५२ (७) निशीथचूर्णिका उल्लेख शिवार्य के सिद्धिविनिश्चय का है ५३ अकलङ्क को ८ वीं सदी (७२०-७८०) का आचार्य सिद्ध करने वाले प्रमाण ५४ अकलङ्क के ग्रन्थ ५५-६० तत्त्वार्थवार्तिक अष्टशती लघीयस्त्रय सविवृति न्यायविनिश्चय सवृत्ति सिद्धिविनिश्चय प्रमाणसंग्रह अकलड़की जैन न्याय को देन प्रमाण के लक्षण में अविसंवादिपद अविसंवाद की प्रायिक स्थिति परकल्पित प्रमाणलक्षणनिरास प्रमाण का विषय पूर्व पूर्वज्ञान की प्रमाणता, उत्तरोत्तर की फलरूपता ईहा और धारणा की ज्ञानरूपता अर्थ और आलोक ज्ञान के कारण नहीं प्रत्यक्ष का लक्षण वैशद्य का लक्षण सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष परोक्ष का लक्षण और भेद स्मृति का प्रामाण्य प्रत्यभिज्ञान का प्रामाण्य तर्क की प्रमाणता अनुमान के अवयव हेतु के भेद ६४ अदृश्यानुपलब्धि से भी अभाव की सिद्धि हेत्वाभास वाद और जल्प जाति का लक्षण जय पराजय व्यवस्था सप्तभंगी निरूपण की प्रगति उपसंहार अकलङ्क का व्यक्तित्व ६५-६६ २. अनन्तवीर्य, सिद्धिविनिश्चय टीका के कर्ता अनन्तवीर्य श्रद्धाल ताकिक अनन्तवीर्य का बहुश्रुतत्व वैदिकसाहित्य और अनन्तवीर्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004038
Book TitleSiddhi Vinischay Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnantviryacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages686
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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