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________________ ७६ प्रस्तावना ये दामनन्दि वे हो सकते है जिनका उल्लेख जैनशिलालेख संग्रह भाग एकके लेख नं० ५५ में चतुर्मुख देवके शिष्यों में है । धाराधिप भोजराजकी सभाके रत्न आचार्य प्रभाचन्द्रके ये सधर्मा थे और इन्होंने विष्णुभट्ट महावादीको हराया था । धाराधिप भोजका राज्यकाल ( ई० २०१८ से १०५३) माना जाता है । जब दामनन्दि का ई० १०४५ के शिलालेख में उल्लेख है तो वे भोजके राज्यकालमें रहनेवाले प्रभाचन्द्र के सधर्मा दामनन्दि से अभिन्न हो सकते हैं । अतः दामनन्दिके गुरु कुमारकीर्ति के सहाध्यापक अनन्तवीर्यकी स्थिति इस लेख से ई० १०४५ तक पहुँचती है। (४) वे अनन्तवीर्य जिनका हुम्मचकी पंचवस्तिके आँगनके एक पाषाण लेखमें' अकलङ्कसूत्रके वृत्तिकर्त्ताके रूपमें उल्लेख है । ये अरुङ्गलान्वय नन्दिसंघके आचार्योंकी परम्परा में हुए हैं । यह लेख शक ९९९ (ई० १०७७) का है । इसी लेखमें आगे कुमारसेनदेव मौनिदेव और विमलचन्द्रभट्टारकका निर्देश है । इनके शिष्यके रूपमें वादिराजकी प्रशस्ति की गई है । वादिराजको पट्तर्कषण्मुख लिखा है । (५) वे अनन्तवीर्य जिनका उल्लेख चामराजनगर के पार्श्वनाथ स्वामी बस्तीके एक पाषाणलेख में किया गया है । ये द्रविण संघकी परम्परा के आचार्य थे । यह लेख शक १०३९ ( ई० १११७) का है । (६) वे अनन्तवीर्य सिद्धान्ती जिनका निदिगिमें प्राप्त एक पाषाण लेखमें क्राणूरगण रूपी कमलवनके सूर्यके रूपसे उल्लेख मिलता है ।" यह लेख शक १०३९ ( ई० १११७) का है । (७) वे अनन्तवीर्य राद्धान्तार्णवपारग जिनकी स्तुति कदम्बहल्लिके शिलालेख में सूरस्थगण के आदि चारु चारित्रभूधरके रूपसे की गई है । इनके शिष्य बालचन्द्र मुनि थे । यह शिलालेख शक १०४० ( ई० १११८) का है I (८) वे अनन्तवीर्य जिनका उल्लेख कल्लूरगुड्डके सिद्धेश्वर मन्दिरके पाषाण लेख में क्राणूरगणके आचार्योंमें शुद्धाक्षराकरदके रूपसे किया गया है ।' यह लेख शक १०४३ ( ई० ११२१) का है । इस लेख में माघनन्दि सिद्धान्तदेवके शिष्य प्रभाचन्द्रके सधर्मा रूपसे अनन्तवीर्य और मुनिचन्द्रका उल्लेख है । प्रभाचन्द्रके गृहस्थ शिष्य भुजबलगंग बर्म्मदेव थे । बर्म्मदेव के चार पुत्र थे मारसिंह, नन्नियगंग, रक्कसगंग और भुजबलगंग । बर्मदेव के दानका समय शक सं० ९७६ ( ई० १०५४) है । अनन्तवीर्य के गृहस्थशिष्य रक्कसगंगदेवने भी इसी समय दान दिया था । (९) वे प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेव के सधर्माः सिद्धान्तकर अनन्तवीर्य जिनका उल्लेख पुरलेके सोमेश्वर मन्दिरकै सामने पड़े हुए एक पाषाणलेख में अभिनव गणधरके रूपसे किया गया है।° यह उल्लेख मूलसंघके क्राणूरगणके आचार्योंमें किया गया है । यह लेख शक १०५४ ( ई० ११३२) का है । इस लेख में प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेवके शिष्य द्वारा शक ९८९ ( ई० १०६७) में दिये गये दानका उल्लेख है । (१०) वे अनन्तवीर्य महावादी जिनका उल्लेख हुम्मचके तोरण वागिलके उत्तर खम्भे के लेख " में (१) जैनशि० द्वि० पृ० २९४ । ए० क० भाग ७ नगर ता० नं० ३५ । अकलङ्कसूत्रके वृत्तियंवरेदनन्तवीर्य भट्टारकवरि ।" - जैनशि० (२) जैन शि० द्वि० पृ० ३८७ । ए० क० भाग ४ चामराज नगर ता० नं० ८३ । (३) जैन शि० द्वि० पृ० ३९२ । ए० क० भाग ७ शिमोगा ता० नं० ५७ । “क्राणूर्गणस बिसरुहवन ( कैनेम्बुदु वसुमतियोळनन्तवीर्यसिद्धान्तिगरम् । ” - वही पृ० ३९५ । जैनशि० द्वि० पृ० ३९९ । ए० क० भाग ४ नागमंगल ता० नं० १९ । (६) "श्री सूरस्थगणे जातश्चारुचारित्रभूधरः । भूपालानतपादाब्जो राद्धान्तार्णवपारगः ॥ आदावनन्तवीर्य - वही पृ० ३९९ । (७) जैनशि० द्वि० पृ० ४०८ । ए० क० भाग ७ शिमोगा नं० ४ । (९) जैनशि० द्वि० पृ० ४५२ । ए० क० भाग ७ शिमोगा ता० नं० ६४ (११) जैनशि० तृ० पृ० ६६ । ए० क० भाग ८ नगर० नं० ३७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only (८) वही पृ० ४१६ | । (१०) वही पृ० ४६४ । www.jainelibrary.org
SR No.004038
Book TitleSiddhi Vinischay Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnantviryacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages686
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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