SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना विद्यानन्दने अपने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक', अष्टसहस्री', प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा', नयविवरण और सत्यशासनपरीक्षा आदि सभी ग्रन्थोंमें अकलङ्कके लघीयस्त्रयकी कारिकाएँ उद्धृत की हैं। सिद्धिविनिश्चय और न्यायविनिश्चय के श्लोक भी इसी तरह प्रमाणरूपमें उद्धृत हैं। इन्होंने अकलङ्कवाङ्मयको खूब माँजा और उसके गूढ़ रत्नोंको अपनी प्रज्ञाशाणपर रखकर चमकाया है । शीलाङ्काचार्य आगमोंके अद्यटीकाकार शीलाङ्कचार्यने वि० ९२५ (ई० ८६८) में चउपन्न महापुरिस चरिउ समाप्त किया था। ये आगमोंके प्रसिद्ध टीकाकार हैं। इन्होंने सूत्रकृताङ्गटीका में लघी० से दो श्लोक उद्धृत किये हैं। अभयदेव सूरि ___ वादमहार्णवकार तर्कपञ्चानन अभयदेवसूरि (ई० १० वीं सदी) ने सन्मतितर्कटीकामें लघीयस्त्रय की कारिकाएँ तथा उसकी स्ववृत्ति उद्धृत की हैं और उनकी प्रमाण-व्यवस्थाका समर्थन किया है । सोमदेव सूरि सुप्रसिद्ध बहुश्रुत साहित्यकार आचार्य सोमदेव सूरि ३ (ई० १०वीं सदी) ने यशस्तिलक चम्पू उत्तरार्ध में सिद्धिविनिश्चयका 'आत्मलाभं विदुर्मोक्षम्' श्लोक' उद्धृत किया है। अनन्तकीर्ति ___ आचार्य अनन्तकीर्ति (ई. १० वीं) ने अपने लघुसर्वसिद्धिप्रकरण में सिद्धिविनिश्चयका 'दशहस्तान्तरं' श्लोक" उद्धृत किया है और उनके वाङ्मयकी युक्तियों से इस प्रकरणको समृद्ध किया है। माणिक्यनन्दि सूत्रकार माणिक्यनन्दि प्रभाचन्द्र के गुरु थे। इनका समय ई० ९९३-१०५३ है। इन्होंने अकलङ्क वचोऽम्भोधिसे न्यायविद्यामृतका उद्धार करके ही परीक्षामुखसूत्र रचा है। विशेष विवरणके लिये परीक्षामखसूत्रोंकी तुलना में न्यायविनिश्चय और लघीयत्रय आदि ग्रन्थोंके अवतरण देखना चाहिए । (१) पृ० १८५, ४२४, २३९, २७०, ३३० और २७१ में क्रमशः कारिका ४, ७, १० ३२, ५४ और ७०। (२) पृ० १३४ में का० ३। (३) पृ० ६९ में का० ३ । (४) पृ० ५ में का० ३। (५) श्लो० ६७ में का० ३२ । (६) पृ० १५ ख में का० ३७। (७) त० श्लो० पृ० १८९ में श्लो० १।२७ । (८) त० श्लो० पृ० १८४ में श्लो० १३ । अष्टसह पृ० ११६ में श्लो० ११५४ । (९) जैनसा० सं० इ० पृ० १८१।। (१०) पृ० २२७ क और ३२६ क में क्रमशः श्लो० ४ और ७२ । (११) सन्मति० प्र० पृ० ८३। (१२) पृ० ५५३, ५५३, ५५३, ५९५, २७२ और ५४४ में क्रमशः श्लो० ५, ५, १०, २२, ३२ और ५६। (१३) जैन सा० इ० पृ० १८२। (१४) पृ० २८०। (१५) सिद्धिवि० ७१९ । (१६) पृ० १२०। (१७) सिद्धिवि० ८।१२। (१८) आप्तप० प्रस्ता० पृ० ३३। (१९) प्रमेयक प्रस्ता० के अन्तकी परीक्षामुखसूत्र तुलना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004038
Book TitleSiddhi Vinischay Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnantviryacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages686
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy