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________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार - इन्द्रिय दमन नामक सोलहवाँ द्वार-सोदास एवं ब्राह्मण की कथा किसी समय बहुत मित्रों के साथ वह नाव में बैठकर नदी में क्रीड़ा करता था । उसे इस तरह क्रीड़ा करते जानकर अपने पुत्र 'को राज्य देने की इच्छा से उसकी सौतेली माता ने उसकी गंध प्रियता जानकर उसे मारने के लिए तीव्र महा जहर को अति कुशलता से पेटी में रखकर और उस पेटी को नदी में बहती छोड़ दी, फिर नदी में क्रीड़ा करते उसने पेटी को आते देख लिया और उसे बाहर निकालकर जब खोली तब उसमें रखा हुआ एक डिब्बा देखा, उसे भी खोला उसमें एक गठरी थी और उसे भी छोड़कर उस जहर को सूंघते ही वह गंध प्रिय राजपुत्र उसी समय मर गया। इस प्रकार दुःख को देने वाला घ्राणेन्द्रिय का दृष्टांत कहा। अब रसनेन्द्रिय के दोष का उदाहरण अल्पमात्र कहते हैं ।। ९०८३ ।। वह इस प्रकार : रसनेन्द्रिय में सोदास की कथा भूमि प्रतिष्ठित नगर में अत्यंत मांस प्रिय सोदास नाम का राजा था। उसने एक समय सारे नगर में अमर अर्थात् अहिंसा की उद्घोषणा करवाई, परंतु राजा के लिए यत्नपूर्वक मांस को बनाते रसोइये की किसी कारण अनुपस्थिति देखकर बिलाव ने उस माँस का हरण कर लिया, इससे भयभीत हुए रसोइये ने कसाई आदि के घर में दूसरा मांस नहीं मिलने से किसी एक अज्ञात बालक को एकांत में मारकर उसके माँस को बहुत अच्छी तरह संस्कारित-स्वादिष्ट बनाकर भोजन के समय राजा को दिया। उसे खाकर प्रसन्न हुए राजा ने कहा कि - हे रसोइया ! कहो! यह माँस कहाँ से मिला है? उस रसोइये ने जैसा बना था वैसे कह दिया। और उसे सुनकर रसासक्ति से पीड़ित राजा ने मनुष्य के माँस की प्राप्ति के लिए रसोइये को सहायक दिये। इससे राजपुरुषों से घिरा हुआ वह रसोइया हमेशा मनुष्य को मारकर उसका माँस राजा के लिए बनाता था। इस प्रकार बहुत दिन व्यतीत होते न्यायधीश ने उस राजा को राक्षस समझकर रात्री में बहुत मदिरा पिलाकर जंगल में फेंकवा दिया। वहाँ वह हाथ में गदा पकड़कर उस मार्ग से जाते मनुष्य को मारकर खाता था और यम के समान निःशंक होकर घूमता फिरता था। किसी समय रात में उस प्रदेश में से एक समुदाय वहाँ से निकला, परंतु सोये हुए समूह को नहीं जान सका, केवल किसी कारण से अपने साथियों से अलग पड़े मुनियों को आवश्यक क्रिया करते देखा, इससे वह पापी उनको मारने के लिए पास में खड़ा रहा, परंतु तप के प्रबल तेज से पराभव होते साधुओं के पास खड़ा रहना अशक्य बना और वह धर्म श्रवणकर उसका चिंतन करते प्रतिबोधित हुआ और वह साधु हो गया। यद्यपि उसने अंत में प्रतिबोध प्राप्त किया, परंतु उसने पहले रसना के दोष से राज्य भ्रष्टता आदि प्राप्त किया था। अब स्पर्शनेन्द्रिय के दोष में भी उदाहरण देते हैं। वह इस प्रकार : स्पर्शेन्द्रिय में ब्राह्मण की कथा शत द्वार नगर में सोमदेव नाम का ब्राह्मण पुत्र रहता था। उसने यौवन वय प्राप्त करते रति सुंदरी नामक वेश्या के रूप और स्पर्श में आसक्त होकर उसके साथ बहुत काल व्यतीत किया। पूर्व पुरुषों से मिला हुआ जो कुछ भी धन अपने घर में था उस सर्व का नाश किया, फिर धन के अभाव में वेश्या की माता ने घर से निकाल दिया, इससे चिंतातुर होकर वह धन प्राप्ति के लिए अनेक उपायों का विचार करने लगा । । ९१०० । । परंतु ऐसा कोई उपाय नहीं मिलने से धनवान के घर में जीव की होड़-बाजी लगाकर रात्री में चोरी करने लगा और इस तरह मिले धन द्वारा दोगुंदक देव के समान उस वेश्या के साथ में यथेच्छ आनंद करने लगा। धन लोभी वेश्या की माता भी प्रसन्न होने लगी । 378 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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