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________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार-पंच नमस्कार नामक आठवाँ द्वार फल प्राप्त कराने वाला यह पंच नमस्कार श्रेष्ठ मंत्र समान है। इसके प्रभाव से शत्रु भी मित्र बन जाता है, तालपुट जहर भी अमृत बन जाता है, भयंकर अटवी भी निवासस्थान के समान चित्त को आनंद देती है। चोर भी रक्षक बनते हैं, ग्रह अनुग्रह कारक बनते हैं, अपशुकन भी शुभशुकन के फल को देने वाले बनते हैं। माता के समान डाकिणी भी अल्पमात्र भी पीड़ा नहीं करती और भयंकर मंत्र, तंत्र, यंत्र के प्रयोग भी उपद्रव करने में समर्थ नहीं होते हैं। पंच नमस्कार मंत्र के प्रभाव से अग्नि कमल के समूह समान, सिंह सियार के सदृश और जंगली हाथी भी मृग के बच्चे समान दिखता है। इसी कारण से देव, विद्याधर आदि भी उठते बैठते, टकराते या गिरते इस नमस्कार का परम भक्ति से स्मरण करते हैं। मिथ्यात्व रूपी अंधकार का नाशक वृद्धि होते श्रद्धा रूपी तेलयुक्त यह नमस्कार रूप श्रेष्ठ दीपक धन्यात्माओं के मनोमंदिर में प्रकाश करता है। जिसके मनरूपी वन की झाड़ियों नमस्कार रूपी केसरी सिंह का बच्चा क्रीड़ा करता है उसको अहित रूपी हाथियों के समूह का मिलन नहीं होता है। बेड़ियों के कठोर बंधन वाली कैद और वज्र के पिंजरे में भी तब तक है जब तक नमस्कार रूपी श्रेष्ठ मंत्र का जाप नहीं किया। अहंकारी, दुष्ट, निर्दय और क्रूर दृष्टिवाला शत्रु भी तब तक शत्रु रहता है, जब तक श्री नमस्कार मंत्र का चिंतनपूर्वक जाप नहीं करता है। इस मंत्र का स्मरण करने वाले को मरण में, युद्ध भूमि में सुभट समूह का संगम होते और गाँव नगर आदि अन्य स्थान में जाते सर्वत्र रक्षण और सम्मान होता है। तथा देदीप्यमान मणि की कांति से व्याप्त विशाल फण वाले सर्पों की फणा के समूह में से निकलती किरणों के समूह से जहाँ भयंकर अंधकार का नाश होता है, ऐसे पाताल में भी इच्छा के साथ मन को आनंद देने वाला, पाँचों इन्द्रियों के विषय जिसके सिद्ध होते है ऐसे दानव वहाँ आनंद करते हैं, वह भी निश्चय से नमस्कार मंत्र के प्रभाव का एक अंश मात्र है। तथा विशिष्ट पदवी, विद्या, विज्ञान, विनय तथा न्याय से शोभित और अस्खलित विस्तार से फैलता निर्मल यश से समग्र भवन तल व्याप्त होना, और अत्यंत अनुरागी स्त्री, पुत्र आदि सारे मित्र तथा स्वजन, आज्ञा को स्वीकार करने में उत्साही बुद्धिमान, घर पर कार्य करने वाले नौकर वर्ग, अक्षीण लक्ष्मी के विस्तार का मालिक और भोगों को प्राप्त करने में श्रेष्ठ राजा, मंत्री आदि विशिष्ट लोगों और प्रजा को अति मान्य हो, मनोवांछित फल की प्राप्ति से सुंदर और दुःख की बात को चमत्कार करने वाला अर्थात् दुःख जैसा शब्द भी जहाँ नहीं है ऐसा जो मनुष्य जीवन मिलता है वह भी नमस्कार के फल का एक अल्प अंश मात्र है । और जो सुकुमार सर्व श्रेष्ठ अंग वाली सुंदर चौसठ हजार स्त्रियों वाला महाप्रभावशाली शोभित बत्तीस हजार सामंत राजाओं वाला, श्रेष्ठ नगर समान छियानवें करोड़ गाँव के समूह से अति विस्तार वाला, देव नगर के समान बहत्तर हजार श्रेष्ठ नगरों की संख्या वाला, खेट, कर्बट, मंडब, द्रोण मुख आदि अनेक स्थलों वाला, शोभते, मनोहर, सुंदर रथों के समूह से धैर्य को देनेवाला, शत्रु सैन्य को छेदन करने से अत्यंत गर्विष्ठ पैदल सेना से व्यास, मद झरते गंड स्थल वाला प्रचंड हाथियों के समूह वाला, मन और पवन तुल्य वेग वाला, चपल खूर से भूमितल को उखाड़ने वाले घोड़ों का समूहवाला, संख्या से सोलह हजार यक्षों की रक्षा से व्याप्त, नव निधान और चौदह रत्नों के प्रभाव से सिद्ध होते सर्व प्रयोजन वाला, इसमें जो छह खंड भरतक्षेत्र का स्वामित्व मिलता है, वह भी निश्चय श्रद्धारूपी जल के सिंचन से सर्व प्रकार से वृद्धि होने वाले श्री पंच नमस्कार रूप वृक्ष के ही विशिष्ट फल का विलास है ।।७६६७ ।। और जैसे दो सीप के संपुट में मोती उत्पन्न होते हैं वैसे उज्ज्वल देव दूष्य वस्त्र से आच्छादित सुंदर देव शय्या में उत्पन्न हो और उसके बाद जीव को वहाँ मनोहर शरीर वाला, जावज्जीव सुंदर, यौवन अवस्था वाला, जावज्जीव रोग, जरा, मैल और पसीने रहित निर्मल शरीर वाला, जीवन तक नस, चरबी, हड्डी, मांस, रुधिर 320 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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