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समाधि लाभ द्वार-पंच नमस्कार नामक आठवाँ द्वार
श्री संवेगरंगशाला आदि शरीर के दुर्गंध से मुक्त, जीवन तक ताजी पुष्प माला और देव दुष्य वस्त्र को धारण करते अच्छी तरह तपा हुआ जातिवंत सुवर्ण और मध्याह्न के सूर्य समान तेजस्वी शरीर की कांति वाला, पंच वर्ण के रत्नों के आभूषण की किरणों से सर्व दिशाओं को चित्रित करते, संपूर्ण गंडस्थल पर लहराते कुंडलों की कांति से देदीप्यमान, तथा मनोहर कंदोरे वाली देवांगनाओं के समूह से मनोहर तथा समग्र ग्रहों के समूह को एक साथ गिराने में, भूतल को घुमाने में, और सारे कुल पर्वतों के समूह को लीलामात्र से चूरण करने में, और मानसरोवर आदि बड़े-बड़े सरोवर, नदियों, द्रह और समुद्रों के जल को प्रबल पवन के समान एक काल में ही संपूर्ण शोषण करने में शक्तिमान, तीनों लोकों को पूर्ण रूप में भर देने के लिए अत्यधिक रूपों को शीघ्र बनाने वाला, तथा शीघ्र केवल परमाणु जैसा छोटा रूप बनाने में समर्थ, और एक हाथ की पाँच अंगुलियों से प्रत्येक के अग्र भाग में एक-एक को एक साथ पाँच मेरु पर्वत को उठाने में समर्थ, अधिक क्या कहें? एक क्षण में ही उपस्थित वस्तु को भी नाश और नाश वस्तु को भी मौजूद दिखाने में और करने में भी समर्थ, तथा नमस्कार करते देव समूह के मस्तक मणि की किरणों की श्रेणि से स्पर्शित चरण वाला. भकटी के इशारे मात्र के आदेश करते ही प्रसन्न होकर संभ्रमपर्वक खड़े होते आभियोगिक देवों के परिवार वाला, इच्छा के साथ में ही अनुकूल विषयों के समूह को सहसा प्राप्त करने वाला, प्रीति रस से युक्त सतत् आनंद करने की एक व्यसनी निर्मल अवधि ज्ञान से और अनिमेष दृष्टि से दृश्यों को देखने वाला तथा समयकाल में उदय को प्राप्त करते सकल शुभकर्म प्रकृतियों वाला इन्द्र महाराज भी देवलोक में जो ऋद्धि से युक्त मनोहर विमानों की श्रेणियों का चिरकाल अस्खलित विस्तार वाला स्वामित्व भोगता है वह भी सद्भावपूर्वक श्री पंच नमस्कार मंत्र की सम्यग् आराधना का अल्प प्रभाव जानना।
ऊर्ध्व, अधो और तिर्छालोक रूपी रंग मंडप में द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव के आश्रित आश्चर्यकारक जो कछ भी विशिष्ट अतिशय किसी तरह किसी भी जीव में दिखता है अथवा सुना जाता है वह सभी श्रीनमस्कार मंत्र स्मरण के महिमा से प्रकट होता है, ऐसा जानो। दुःख से पार उतारने वाले, जल में, दुःख से पार कर सके ऐसी अटवी में, दुःख से पार उतरनेवाला विकट पर्वत में अथवा भयंकर श्मशान में अथवा अ समय पर जीव को नमस्कार रक्षक और शरण है। वश करना, स्थान भ्रष्ट करना, तथा स्तम्भित करना, नगर का क्षोभ करवाना या घेराव करना इत्यादि में तथा विविध प्रयोग करने में यह नमस्कार ही समर्थ है। अन्य मंत्रों से प्रारंभ किया हुआ जो कार्य, सम्यक् प्राप्ति उसके फल की भी इसके स्मरण से ही होती है। अथवा अपने मंत्र के स्मरणपूर्वक कार्य प्रारंभ किये हुए की सिद्धि करने वाला, यह श्री पंच नमस्कार के स्मरण का ही प्रभाव है। इसलिए सभी सिद्धियों का और मंगलों के इच्छित आत्मा को नमस्कार का सर्वत्र सदा सम्यक् चिंतन करना चाहिए। सोते, उठते, छींकते, खड़े होते, चलते, टकराते, या गिरते इत्यादि सर्व स्थानों पर निश्चय इस परम मंत्र का प्रयत्नपूर्वक बार-बार स्मरण करना चाहिए। पुण्यानुबंधी पुण्य वाले जिसने इस नमस्कार को प्राप्त किया है उसने नरक और तिर्यंच की गति को अवश्यमेव रोक दिया है। निश्चय ही पुनः वह कभी भी अपयश और नीच गोत्र को प्राप्त नहीं करता और जन्मांतर में भी यह नमस्कार प्राप्त होना उसे दुर्लभ नहीं है। और जो मनुष्य एक लाख नमस्कार मंत्र को अखंड गिनकर श्री जिनेश्वर भगवान की तथा संघ की पूजा करता है वह श्री तीर्थंकर नामकर्म का बंध करता है। और नमस्कार के प्रभाव से अवश्य जन्मांतर में भी जाति, कुल, रूप, आरोग्य और संपत्तियाँ इत्यादि सामग्री श्रेष्ठ मिलती हैं। चित्त से चिंतन किया हुआ, वचन से प्रार्थना की हो और काया से प्रारंभ किया हुआ, तब तक ही सफल नहीं होता कि जब तक नमस्कार मंत्र स्मरण नहीं किया। और इस नमस्कार मंत्र से ही मनुष्य संसार में कदापि नौकर-चाकर, दुर्भागी, दुःखी, नीच कुल में जन्म और विकल इन्द्रियवाला नहीं
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