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________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार-प्रमाद त्याग नामक चौथा द्वार वक्र वचनों को, किसी समय उसके कटाक्षों को और उसके भाव को भी लोग जानते हैं और इस तरह दूसरों को कहते हैं। अंतर के भाव ऐसे हैं तो यह तुच्छ ब्रह्मचर्य से निश्चय पतित होगा ऐसी कल्पना करते हैं। और व्रत के रक्षण से गिरा हुआ पुनः वह मुनि चिंतन करता है कि ऐसे भी साधुता तो नहीं है अब अपना इच्छित अब्रह्म का सेवन करना अच्छा है'। ऐसा विचार करके वह मूढ़ात्मा प्रमाद-अब्रह्म का सेवन करता है परंतु हे भाई! इस दुषम काल में दुःखपूर्वक जीता है और अब्रह्म के फल स्वरूप अठारह पाप स्थानों का विचार करता है। इस तरह स्त्री कथा के दोष जानना। अथवा अन्य ग्रंथ में इस चार गाथा द्वारा क्रमशः चार विकथा के दोष कहे हैं। स्त्री कथा से स्वपर मोह का उदय प्रवचन का उपहास्य, सूत्र आदि जो प्राप्ति हुई थी उसकी हानि, परिचय दोष से ब्रह्मचर्य में अगुप्ति, मैथुन सेवन आदि दोष लगते हैं। भक्त कथा से भोजन किये बिना भी गृद्धि होते ही अंगार दोष, इन्द्रियों की निरंकुशता, और परिताप से उसे बुलाने का आदेश देना इत्यादि दोष होते हैं। देश कथा से-राग द्वेष की उत्पत्ति, स्व-पर पक्ष से परस्पर युद्ध और यह देश बहुत गुणकारक है ऐसा सुनकर अन्य वहाँ जाय इत्यादि दोष लगते हैं। राज कथा से–यह कोई चोर गुप्तचर या घातक है, ऐसी कल्पना से राजपुरुष आदि को मारने की इच्छा, शंकाशील बनें अथवा स्वयं चोरी आदि करने की इच्छा करें, अथवा भक्त कथा आदि को सुनकर स्वयं भोगी हुई या नहीं भोगी हुई उस वस्तु की अभिलाषा करें। तथा जो मनुष्य जिस कथा को कहे वह वैसा परिणाम से युक्त बनता है। इसलिए उसे कुछ विशेषतापूर्वक कहते है। कथा कहकर प्रायःकर चंचल चित्त वाला बनता है और चंचल चित्त बना हुआ पुरुष प्रस्तुत वस्तु होने पर अथवा नहीं होने पर भी गुण दोष का अपलाप करता है, इससे उसका सत्यवादी जीवन नहीं होता है। और अपने अनुकूल पदार्थ में प्रकर्ष का आरोप राग से होता है तथा प्रतिपक्ष में गुणों का अपकर्ष द्वेष से होता है। इस तरह उसमें रागी द्वेषी बनता है। अतः विकथा असत्यवादी, राग और द्वेष के उत्पन्न होने का कारण है, इसलिए पाप का हेतु होने से साधुओं को सभी विकथाओं का त्याग करना योग्य है। विकथा महा प्रमाद है, उत्तम धर्म ध्यान में विघ्नकारक है, अज्ञान का बीज है, और स्वाध्याय में व्याघात करता है। और विकथा अनर्थ की माता है, परम असद्भाव का स्थान है, अशिस्त का मार्ग है और लघुता कराने वाला है। विकथा समिति का घातक है, संयम गुणों की हानि करने वाली, गुप्तियों की नाशक है और कुवासना का कारण है। इस कारण से हे आर्य! तूं विकथा का सर्वथा त्यागकर हमेशा मोक्ष के सफल अंगभूत स्वाध्याय के प्रति प्रयत्नशील बन। और स्वाध्याय से जब अति श्रमिक हो तब तूं मन में परम संतोष धारण कर उसी कथाओं के संयम गुण से अविरुद्ध संयम मार्ग सम्यक् पोषक कथा का विचारकर कथा को कहे, जैसा कि गुणकारी स्त्री कथा :- तीन जगत के तिलक समान पुत्ररत्न को जन्म देने वाली मरुदेवा माता अंत में अंतकृत् केवली बनी और उसी समय मुक्ति की अधिकारी बनी। सुलसा सती ने पाखंडियों के वचनरूपी पवन से उड़ती मिथ्यात्वरूपी रज के समूह से भी अपने सम्यक्त्व रत्न को, अल्पमात्र मोक्ष मार्ग को मलिन नहीं किया। मैं मानता हूँ कि ऐसी धन्य और पवित्र स्त्री जगत में और कोई नहीं है क्योंकि जगत गुरु श्री वीर परमात्मा ने उसके गुणों का वर्णन किया है इस प्रकार उस एक को ही आगम में कहा है इत्यादि। गुणकारी भक्त कथा :- राग द्वेष रहित गृहस्थ के वहाँ विद्यमान बयालीस (४२) दोष से रहित, संयम पोषक, रागादि रहित चारित्र जीवन को टिकाने वाला, वह भी शास्त्रोक्त विधिपूर्वक संगत मात्र मौनपूर्वक प्राप्त करना, ऐसा ही भोजन हमेशा उत्तम साधुता के लिए करना योग्य है। गुणकारी देश कथा :- जहाँ आनंद को देने वाला श्री जिनेश्वर भगवंत का मंदिर हो, तथा तेरह गुण 310 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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