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समाधि लाभ द्वार-प्रमाद त्याग नामक चौथा द्वार
श्री संवेगरंगशाला (३) देश कथा :- इसमें भी चार भेद हैं (१) छंद कथा, (२) विधि कथा, (३) विकल्प कथा और (४) नेपथ्य कथा। इसमें मगध आदि देशों का वर्णन करना। छंद अर्थात् भोग्य, अभोग्य का विवेक। जैसे कि लाट देश के लोग मामा की पुत्री का भी भोग करते हैं और गोल्ल आदि देश के लोगों को वह बहन मानने से निश्चय अभोग्य समझते हैं। अथवा औदिच्य जाति के लोगों में माता की शोक्य भोग्य मानते हैं, वैसे दूसरे उसे माता तुल्य मानकर अगम्य मानते हैं, यह छंद कथा है। प्रथम जिस देश में जो भोगने योग्य है या नहीं भोगने योग्य है, उस देश की विधि जानना और उसकी कथा करना वह देश विधि कथा हैं, अथवा विवाह, भोजन, वर्तन और रत्न, मोती, मणि आदि समूह की सम्भाल-रक्षा अथवा आभूषण या भूमि में मणि लगाना आदि रचना की जो विधि हो उसकी कथा करना वह विधि कथा जानना। जिसमें विकल्प अर्थात् अनाज की निष्पत्ति तथा किल्ले, कुंआ, नीक, नदी का प्रवाह का वर्णन, चावल रोपण आदि करना तथा घर मंदिर का विभाग, गाँव, नगर आदि की स्थापना करना इत्यादि विकल्प करने वाली कथा को विकल्प कथा कहते हैं। स्त्री पुरुषों के विविध वेष को नेपथ्य कहते हैं, वह स्वभाविक और शोभा के लिए की जाती है, इस तरह दो प्रकार के भेद हैं उसकी प्रशंसा या निंदा करना वह नेपथ्य कथा है। इस तरह चार प्रकार की देश कथा जानना। अब राजकथा कहते हैं।
(४) राज कथा :- यह भी चार प्रकार की कही है :-(१) निर्यान कथा, (२) अतियान कथा, (३) बल वाहन कथा तथा (४) कोठार कोष कथा। उसमें गाँव, नगर या आकर से राजा जो निकला वह निर्याण है और उसी स्थान में ही जो प्रवेश करना उसे अतियान कहते हैं। इस निर्याण और अतियान को उद्देश्य लेकर राजा का जो वर्णन करना वही निर्याण कथा और अतियान कथा है। वह इस प्रकार महा शब्दवाली दंदभि की गर्जना द्वारा. मंत्री, सामंत, राजा आदि जिसके पास आ रहे थे, जिसके हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेना के समूह से पृथ्वी तल ढक गया था, हाथी की पीठ पर सम्यग् बैठा था, चंद्र समान निर्मल छत्र और चमर का आडंबर वाले और देवों का स्वामी इन्द्र समान राजा महा ऋद्धि सिद्धि के साथ नगर में से निकलता है इत्यादि निर्याण कथा है। क्रीड़ा पर्वत जंगल आदि में यथेच्छ विविध क्रीड़ा करके जिसमें घोड़ों के खूर से खुदी हुई पृथ्वी की रज से सेना के सारे मनुष्य मलिन हो गये थे, भृकुटी के इशारे मात्र से स्व-स्व स्थान पर विदा किये हुए और इससे जाते हुए सामंत जिसको नमस्कार करते है। ऐसे राजा मंगलमय बाजे बजते पूर्वक नगर में प्रवेश करते हैं। इत्यादि अतियान कथा है। बल वाहन तो हाथी, घोड़े, खच्चर, ऊँट आदि कहे जाते हैं उसका वर्णन स्वरूप कथा को बल वाहन कथा कहते हैं। जैसे कि-घोड़े, हाथी, रथ और योद्धाओं का समूह से दुर्जन अनेक शत्रुवर्ग को जिसने हराया है, वह इस प्रकार की सेना अन्य राजाओं के पास नहीं है। ऐसा मैं मानता हूँ। इत्यादि बल वाहन कथा है। कोठार अर्थात् अनाज भरने का स्थान और कोष अर्थात् भण्डार उसका वर्णन करना उस कथा में नाम कोठार कोष कथा कहते हैं। जैसे कि-निज वंश में पूर्व पुरुषों की परंपरा से आया हुआ उनका भंडार अपने भुजा के पराक्रम से पराभव होते शत्रु राजाओं के भंडारों से हमेशा वृद्धि को प्राप्त करते अखूट रहता है। इत्यादि चार विकथा का वर्णन किया। अब इस विकथा को करने से दोष लगते हैं उन्हें कहते हैं।
स्त्री कथा के दोष :- स्त्री कथा करने से अपने को और पर को अत्यंत मोह की उदीरणा होती है और उदीरित मोह वाला लज्जा-मर्यादा को दूर फेंककर मन में क्या-क्या अशुभ चिंतन नहीं करता? वाणी द्वारा क्याक्या अशुभ नहीं बोलता? काया द्वारा क्या-क्या अशुभ कार्य नहीं करता? और इस प्रकार यदि करे तो शासन का मखौल होता है ।।७४०२।। क्योंकि स्त्री कथा कहने वाले, सुनने वाले और देखकर चतुर लोग उसके वचन और आकृति से 'यह स्वयं ऐसा ही होगा' ऐसा मानते हैं। क्योंकि-पंडितजनों से युक्त गाँव में किसी समय उसके
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