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________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार-प्रमाद त्याग नामक चौथा द्वार श्रुतज्ञान नाश होता है। अमृत तुल्य श्रुतज्ञान नाश होते ही वह बैल समान बन जाता है। इसलिए हे देवानुप्रिय! निद्रा प्रमादरूपी शत्रु सेना को जीतकर अखंड जागृत दशा में तूं स्थिर अभ्यस्त सूत्र-अर्थ वाला बन। इस तरह चौथा निद्रा नामक अंतर द्वार कहा, अब पाँचवां विकथा द्वार विस्तारपूर्वक कहता हूँ ।।७३५९।। पाँचवां विकथा प्रमाद का स्वरूप :-विविधा, विरूप अथवा संयम जीवन में बाधक रूप से जो विरुद्ध कथा हो उसे विकथा कहते हैं। इस की अपेक्षा से उसके स्त्री कथा, भक्त कथा, देश कथा और राज कथा इस तरह चार प्रकार सिद्धांत में कहे हैं। इसकी अलग-अलग रूप में व्याख्या करते हैं। (१) स्त्री कथा :-अर्थात् स्त्रियों की अथवा स्त्रियों के साथ में कथा–बातें करना। उस कथा द्वारा जो संयम का विरोध हो अथवा बाधक हो उस कथा को विकथा कहते हैं। यह स्त्री कथा जाति, कुल, रूप और वेश के भेद से चार प्रकार की होती है। उसमें भी क्षत्रियाणी, ब्राह्मणी, वैश्यी और शुद्री इन चार में से किसी भी जाति की स्त्री की प्रशंसा अथवा निंदा करना उसे जाति कथा कहते हैं। उसका स्वरूप इस तरह है जैसे कि बाल विधवा, क्षत्रियाणी, ब्राह्मणी और वैश्य की स्त्री का जीना भी मरण के समान है तथा सर्व लोक को शंका पात्र होने से उसके जीवन को धिक्कार हो। मैं मानता हूँ कि-जगत में केवल एक शुद्र की स्त्री को ही धन्य है कि जो नये-नये अन्य परुष को पति करने पर भी दोष नहीं मानती। उग्र आदि उत्तम या अन्य नीच कुल में जन्मी हुई किसी भी स्त्री के उस कुल के कारण प्रशंसा अथवा निंदा करना उसे कुल कथा कहते हैं। जैसे कि-चौलुक्य वंश में जन्मी हुई स्त्रियों का जो साहस होता है, ऐसा अन्य स्त्रियों में नहीं होता है। जो कि प्रेम रहित होने पर भी पति मरे तब उसके साथ अग्नि में प्रवेश करती हैं। आन्ध्रप्रदेश या अन्धी आदि किसी की भी रूप की प्रशंसा अथवा निंदा करना उस कथा के जानकार पुरुषों ने रूप कथा कहा है। जैसे कि-विलासपूर्वक नाचते नेत्रों युक्त मुखवाली और लावण्य रूपी जल का समुद्र सदृश आन्ध्रप्रदेश की स्त्रियाँ होती हैं, उसमें काम भी सर्व अंग के अंदर फैला हुआ है अथवा शरीर उसका धूल से भरा हुआ है और गले में लाख के मणि भी बहुत नहीं हैं, शोभा रहित है, तथापि जाट देश की स्त्रियों का रूप अति सुंदर है, उसके रूप आकर्षण से पथिक उठ-बैठ करते रहते हैं। उसके ही किस वेश की प्रशंसा या निंदा आदि करना उसके ज्ञाताओं ने उसे नेपथ्य या वेष कथा कहा है जैसे कि विशिष्ट आकर्षक वेश से सजे अंगों वाली, विकसित नील कमल समान नेत्रों वाली और सौभाग्यरूपी जल की बावडी समान संदर भी नारी के यौवन को धिक्कार हो! धिक्कार हो! कि जिसने लावण्य रूपी जल को युवा के नेत्र रूपी अंजलि से पिया नहीं है। अर्थात् युवानों को जो दर्शन नहीं देती उस वेष को धिक्कार है। [चूंघट प्रथा का अपमान करना भी स्त्री कथा में नेपथ्य कथा है| इत्यादि वेष कथा है। स्त्री कथा समाप्त। (२) भक्त कथा :-यह चार प्रकार की है-१. आवाप कथा, २. निर्वाप कथा, ३. आरंभ कथा, और ४. निष्ठान कथा। इसमें आवाप कथा अर्थात् भोजन में अमुक इतने प्रमाण में साग-सब्जियाँ, नमकीन आदि नाना प्रकार के थे और इतने प्रमाण में शुद्ध घी आदि स्वादिष्ट वस्तु का प्रयोग किया था। निर्वाप कथा उसे कहते हैं जैसे कि-उस भोजन में इतने प्रकार के व्यंजन-साग, दाल आदि थे तथा इतने प्रकार की मिठाई आदि थीं। आरंभ कथा अर्थात् उस भोजन में इतने प्रमाण में जलचर, स्थलचर और खेचर जीवों का प्रकट रूप में उपयोग हुआ था। और निष्ठान कथा उसे कहते हैं कि-उस भोजन में एक सौ, पाँच सौ, हजार अथवा अधिक क्या कहूँ? लाख रुपये से अधिक ही खर्च किया होगा इत्यादि। यह भक्त कथा है। 308 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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