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समाधि लाभ द्वार-अनुशास्ति नामक प्रथम द्वार-सासु-बहू और पुत्री की कथा
श्री संवेगरंगशाला है, सुवासना रूपी अग्नि में जल का छिड़काव है और अपयश रूपी कुलटा को मिलने का सांकेतिक घर है, दोनों जन्म में उत्पन्न होने वाली आपत्ति रूपी कमलों को विकसित करने वाला शरद ऋतु का चंद्र है और अति विशुद्ध धर्म गुण रूपी धान्य संपत्तियों को नाश करने में दुष्ट वायु है, पूर्वापर वचन विरोध रूप प्रतिबिम्ब का दर्पण है और सारे अनर्थों के लिए सार्थपति के मस्तक मणि है। और सज्जनता रूपी वन को जलाने में अति तीव्र दावानल है, इसलिए सर्व प्रयत्न से इसका त्याग करना चाहिए। और जैसे जहर मिश्रित भोजन परम विनाशक है तथा जरा यौवन की परम घातक है, वैसे असत्य भी निश्चय सर्व धर्म का विनाशक जानना।
भले जटाधारी हो, शिखाधारी या मुण्डन किया हो, वृक्ष के छिलकों के वस्त्र धारण करने वाले हों अथवा नग्न हों फिर भी असत्यवादी लोक में पाखंडी और चंडाल कहलाता है ।।५६८६ ।। एक बार भी असत्य बोलने से अनेक बार बोले हुए सत्य वचनों का भी नाश करता है। और इस तरह यदि वह कभी सत्य बोले फिर भी वह मृषावादी तो अविश्वास पात्र ही रहता है। इसलिए झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि लोक में असत्यवादी निंदा का पात्र बनता है और अपने प्रति अविश्वास प्रकट करता है। राजा भी मृषावादी के दुष्ट प्रवृत्ति को देखकर जीभ छेदन आदि कठोर दण्ड देता है। मृषा बोलने से उत्पन्न हुए पाप के द्वारा जीव को इस जन्म में अपकीर्ति और परलोक में सबसे निम्न गति प्राप्त होती है। इसलिए परलोक की आराधना के एकचित्त वाले आत्मा को क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य अथवा भय से भी मृषावाद नहीं बोलना चाहिए। इर्ष्या और कषाय से भरा हुआ बिचारा मनुष्य मृषावाद बोलने से दूसरे का उपघात करता है। ऐसा वह नहीं जानता कि मैं अपना ही घात करता हूँ। लांच (रिश्वत) लेने में रक्त है, कूटसाक्षी देने वाला है, मृषावादी है, आदि लोगों के धिक्कार रूप पुद्गल से मारा जाता है और महाभयंकर नरक में गिरता है। उसमें लांच लेने में रक्त मनष्य की कीर्ति अपना प्रयोजन. मन की शांति अथवा धर्म नहीं होता है, परंतु दुर्गति गमन ही होता है। झूठी साक्षी देने वाला अपना सदाचार, कुल, लज्जा, मर्यादा, यश, जाति, न्याय, शास्त्र और धर्म का त्याग करता है तथा मृषा बोलने वाला मृषावादी जीव इन्द्रिय रहित, जड़त्व, मूंगा, खराब स्वर वाला, दुर्गंध मुख वाला, मुख के रोग वाला और निंदा पात्र बनता है।
मषा वचन यह स्वर्ग और मोक्ष मार्ग को बंद करने वाली जंजीर है, दुर्गति का सरल मार्ग है और अपना प्रभाव नाश करने वाला है। जगत में भी सारे उत्तम पुरुषों ने मृषा वचन की जोरदार निंदा की है, झूठा जीव अविश्वासकारी होता है, इसलिए मृषा नहीं बोलना चाहिए। यदि जगत में जो दयालु है वह सहसा कुछ भी झूठ नहीं बोलते हैं, फिर यदि दीक्षित भी झूठ बोले तो ऐसी दीक्षा से क्या लाभ? ।।५६९९।। सत्य भी वह नहीं बोलना कि जो किसी तरह असत्य-अहितकर वचन हो, क्योंकि जो सत्य भी जीव को दुःखजनक बनें वह सत्य भी असत्य के समान है ।।५७००।। अथवा जो पर को पीड़ाकारक हो उसे हास्य से भी नहीं बोलना चाहिए। क्या हास्य से खाया हुआ जहर कड़वा फल देने वाला नहीं बनता है? इसलिए हे भाई! सत्य कहता हूँ कि-निश्चय मृषा वचन को सर्व प्रकार से त्याग कर, यदि उसका त्याग किया, तो कुगति का सर्वथा त्याग किया है, ऐसा जान। झूठ बोलने से पापसमूह के भार से जीव, जैसे लोहे का गोला पानी में डूब जाता है, वैसे नरक में डूब जाता है इसलिए असत्य को छोड़कर हमेशा सत्य ही बोलना चाहिए, क्योंकि वह सत्य स्वर्ग में और मोक्ष में ले जाने के लिए मनोहर विमान है। जो वचन कीर्तिकारक, धर्मकारक, नरक के द्वार को बंद करने वाला, दुर्गति के द्वार के सांकल के समान, सुख अथवा पुण्य का निधान, गुण को प्रकट करने वाला तेजस्वी दीपक, शिष्ट पुरुषों का इष्ट और मधुर हो, स्व पर पीड़ा नाशक, बुद्धि द्वारा विचारा हुआ, प्रकृति से ही सौम्य-शीतल, निष्पाप और कार्य सफल करने वाला हो, उस वचन को सत्य जानना।
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