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________________ परगण संक्रमण द्वार-अनुशास्ति द्वार-सुकुमारिका की कथा -सिंह गुफावासी मुनि की कथा श्री संवेगरंगशाला आभूषणों को बेचकर उस धन से व्यापार करने लगा। और पंगु आदमी को निर्विकारी जानकर, रक्षण के लिए रानी के पास रख दिया। उसने मधुर गीतों से और कथा कौशल आदि से रानी को वश में किया। इससे रानी उसके साथ एकचित्त वाली और पति के प्रति द्वेष वाली बनीं। अन्य अवसर पर वह पंगु के साथ क्रीड़ा करती थी और एक दिन उसने उद्यान में रहे अति विश्वासु जितशत्रु को अति मात्रा में मदिरा पान करवा कर गंगा नदी में फेंक दिया। इस तरह अपने मांस और रुधिर को देकर भी पोषण किये शरीर वाली निर्भागी स्त्रियाँ उपकार भूलकर पुरुष को मार देती हैं। जो स्त्रियाँ वर्षाकाल की नदी समान नित्यमेव कलुषित हृदय वाली, चोर समान धन लेने की एक बुद्धि वाली, अपने कार्य को गौरव मानने वाली, सिंहनी के समान भयंकर रूप वाली, संध्या के समान अस्थिर-चंचल रूप वाली और हाथियों के श्रेणियों के सदृश नित्य मद से या विकार से व्याकुल होती हैं। वे स्त्रियाँ कपट हास्य से और बातों से, कपटमय रुदन से और मिथ्या शपथ से अति विलक्षण पुरुष को भी विवश करती हैं। निर्दय स्त्री पुरुष को वचन से वश करती है और हृदय से नाश करती है। क्योंकि उसकी वाणी अमृतमय और हृदय विषमय समान होता है। 'स्त्री शोक की नदी, पाप की गुफा, कपट का घर, क्लेश करनेवाली, वैर रूपी अग्नि को प्रकट करने में अरणी काष्ठ समान दुःखों की खान और सुख की शत्रु होती है।' इस कारण ही महापुरुष 'एकान्त में मन विकारी बनता है।' इस भय से माता, बहन या पुत्री के साथ एकान्त में बात नहीं करते हैं। सम्यग् दृढ़ अभ्यास किये बिना म्लेच्छ- पापी कामदेव के बाण समूह समान स्त्रियों की दृष्टि के कटाक्षों को जीतने में कौन समर्थ है? पानी से भरे हुए बादलों की श्रेणी जैसे गोनस जाति के सर्प के जहर को बढ़ाता है वैसे ऊँचे स्तन वाली स्त्रियाँ पुरुष में मोह रूपी जहर को बढ़ाती हैं। तथा दृष्टि विष सर्प के समान स्त्रियों की दृष्टि का त्याग करो—उसके सामने देखो ही नहीं, क्योंकि - उसकी दृष्टि पड़ने से प्रायःकर चारित्र रूपी प्राण का नाश हो है। जैसे अग्नि से घी पिघल जाता है, वैसे स्त्री संसर्ग से अल्प सत्त्व वाले मुनि का भी मन मोम समान तुरंत ही विलय प्राप्त होता है। यद्यपि संसर्ग का त्यागी और तप से दुर्बल शरीर वाला हो, फिर भी उपकोशा वेश्या के घर में रहा हुआ सिंह गुफावासी मुनि के समान स्त्री संसर्ग से चारित्र से गिरता है ।। ४४४२ ।। उसका दृष्टांत इस प्रकार है : सिंह गुफावासी मुनि की कथा गुरु ने स्थूलभद्रजी की प्रशंसा करने से सिंह गुफावासी मुनि को तीव्र ईर्ष्या हुई। वह मन में सोचने लगा कि—कहाँ वर्षाकाल में उपकोशा के घर में रहने वाला स्थूलभद्र मुनि और कहाँ दुष्कर तप शक्ति द्वारा सिंह को भी शांत करने वाला मैं आचार्य श्री संभूति विजय का शिष्य ? अतः वह अपना प्रभाव दिखाने के लिए चौमासे में उपकोशा के घर गया । उपकोशा उत्तम वेश्या ने उसके शील के रक्षण के लिए विकारी हास्य, विकारी वचन, विकारी चाल और वक्र कटाक्ष आदि द्वारा लीला मात्र में उसे विकारी कर शीघ्रमेव उसे अपने वशीभूत कर दिया। फिर उसे 'नये साधु को लाख स्वर्ण मुद्रा की मूल्य वाली रत्न कम्बल का दान नेपाल देश का राजा देता है' उसके पास रत्न कम्बल लेने के लिए भेजा। इस तरह तत्त्व से विचार करते संयम रूपी प्राण का विनाश करने में एकबद्ध लक्ष्य वाली एवं दुःख को देने वाली स्त्री में तथा प्राण लेने के, लक्ष्य वाले, दुःख देने वाले शत्रु में कोई भी अंतर नहीं है । तथा मुनि श्रृंगार रूपी तरंग वाली, विलास रूपी ज्वर वाली, यौवन रूपी जल वाली और हास्य रूपी फणा वाली, स्त्री रूपी नदी में नहीं बहते हैं। परंतु धीर पुरुषों ने विषय रूपी जल वाले, मोह रूपी कीचड़ वाले स्त्रियों के नेत्र विकार तथा विकारी 189 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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