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श्री संवेगरंगशाला
परिकम विधि द्वार-श्रेणी नामक तेरहवाँ प्रतिद्वार-स्वयंभूदत्त की कथा इस तरह पापरूपी अग्नि का नाश करने में जल के समूह रूप संवेगरंगशाला नाम की आराधना के मल परिकर्म विधि नामक द्वार में कहे हुए पन्द्रह अंतर द्वारों में क्रमशः यह अधिगत मरण नामक बारहवाँ प्रतिद्वार कहा। इस अधिगत मरण को स्वीकार करने पर भी श्रेणी बिना जीव आराधना में आरूढ़ होने अर्थात् ऊँचे गुणस्थान पर चढ़ने में समर्थ नहीं होता है। अतः अब श्रेणी द्वार कहते हैं ।।३७४६।। श्रेणी नामक तेरहवाँ द्वार :
यह द्रव्य और भाव से दो प्रकार की श्रेणी है। इसमें ऊँचे स्थान पर चढ़ने के लिए सोपान आदि द्रव्य श्रेणी जानना। और संयम स्थानों की लेश्या और स्थिति की तारतम्यता वाला शुद्धतर केवलज्ञान की प्राप्ति तक प्राप्त करना या अनुभव करना उसे भाव श्रेणी जानना। वह इस तरह-जैसे महल पर चढ़नेवाले को द्रव्य श्रेणीरूपी सीढ़ी होती है, वैसे ही ऊपर से ऊपर के गुणस्थानक को प्राप्त करने वाले को भाव श्रेणी रूपी सीढ़ी होती है। इस भाव श्रेणी के ऊपर चढ़ा हुआ उद्गमादि दोषों से दूषित वसति का और उपधि का त्यागकर निश्चित संयम में सम्यग् विचरण करता है। वह आचार्य के साथ आलाप-संलाप करता है और कार्य पड़ने पर शेष साधुओं के साथ बोलता है, उसे मिथ्या दृष्टि लोगों के साथ मौन और समकित दृष्टि तथा स्वजनों से बोलें अथवा नहीं भी बोलें। अन्यथा यथातथा परस्पर बातों में आकर्षित चित्त प्रवाह वाला किसी आराधक को भी प्रमाद से प्रस्तुत अर्थ में अर्थात् आराधना में विघ्न भी हो, इससे आराधना करने की इच्छा वाले उसमें ही एकचित्त वाले श्रेणी का प्रयत्न करें, क्योंकि इस श्रेणी का नाश होने से स्वयंभूदत्त के समान आराधना नाश होती है ।। ३७५३।। वह इस प्रकार है :
स्वयंभूदत्त की कथा कंचनपुर नगर में स्वयंभूदत्त और सुगुप्त नामक परस्पर दृढ़ प्रीतिवाले और लोगों में प्रसिद्ध दो भाई रहते थे। अपने कुलक्रम के अनुसार से, शुद्ध वृत्ति से आजीविका को प्राप्त कर वे समय सुखपूर्वक व्यतीत करते थे। एक समय क्रूर ग्रह के वश बरसात के अभाव से नगर में अति दुःखद भयंकर दुष्काल पड़ा। तब बहुत समय से संग्रह किया हुआ बहुत बड़ा जंगी घास का समूह, और बड़े-बड़े कोठार खत्म हो गयें। इससे कमजोर पशुओं को और मनुष्यों को देखकर उद्विग्न बनें राजा ने नीतिमार्ग को छोड़कर अपने आदमियों को आज्ञा दि कि-अरे! इस नगर में जिसका जितना अनाज संग्रह हो उससे आधा-आधा जबरदस्ती जल्दी ले आओ। इस तरह आज्ञा को प्राप्त कर और यम के समान भृकुटी रचना से भयंकर उन राजपुरुषों ने सर्वत्र उसी प्रकार ही किया। इससे अत्यंत क्षधा से धन-स्वजन के नाश से. और अत्यंत रोग के समह से व्याकल लोग सविशेष मरने लगे. और घर मनुष्यों से रहित बनने के कारण, गलियाँ (गलियों में इतने शब पड़े हुए थे।) धड़-मस्तक से दुर्गम बनने के कारण एवं लोगों को अन्य स्वस्थ देशों में जाने के कारण वह स्वयंभूदत्त भी अपने भाई सुगुप्त सहित नगर में से निकलकर परदेश जाने के लिए एक सार्थवाह के साथ हो गया। साथ ही लम्बा रास्ता पार करने के बाद जब एक अरण्य में पहुँचे, तब युद्ध में तत्पर शस्त्रबद्ध भिल्लों का धावा आ गया। जोर से चिल्लाते, भयंकर धनुष्य ऊपर चढ़ाये हुए बाण वाले, बाँधे हुए मस्तक के ऊँचे चोटी वाले, यम ने भेजे हों इस तरह, तमाल ताड़ के समान काले, शत्रुओं को नाश करने में समर्थ, चमकती तेजस्वी तलवार वाले, इससे मानो बिजली सहित काले बादलों की पंक्ति हो इस तरह भयंकर, जंगली हाथियों को नाश करने वाले, हिरणों के मांस से अपना पोषण करने वाले मांसाहारी, उत्तम लोगों को दुःखी करने वाले, और युद्ध करने में एक सदृश रस रखने वाले, उन्होंने एकदम धावा
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