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परिकर्म विधि द्वार-पंडित मरण की महिमा
श्री संवेगरंगशाला
अल्प पुण्यवाला चिंतामणि रत्न प्राप्त कर सकता है? इसलिए उसके बिना अज्ञ जीवों को तो बार-बार बाल मरण सुलभ है, यह बाल मरण अनर्थ को करने वाला और संसारवर्धक है। क्योंकि बाल-अर्थात् मूर्ख, वह पुनः निदानपूर्वक अनशन रूप विविध तपकर मरता है, वह अशुभव्यन्तर की जातियों में उत्पन्न होता है। और वहाँ उत्पन्न हुआ वह बालक के समान हँसी, मजाक, दिल्लगी, काम-क्रीड़ा आदि का व्यसनी वह वैसी क्रीड़ाओं को करता है कि जिससे पुनः अनादि अनंत संसार समुद्र में बार-बार परिभ्रमण करता है। इससे पूर्व कर्मों के क्षय के लिए उद्यमी और धीरपुरुष एक बार पंडित मरण को प्राप्त कर संसार का पार पाने वाला होता है। जो एक पंडित मरण से मरते
परते हैं वे पनः अनेक मरण नहीं करते हैं. ऐसे पंडित मरण से आयष्य पूर्ण करने वालों ने अप्रमत्त भाव से चारित्र की आराधना की हैं। संयम गुणों में सम्यक् संवर को करने वाला और सर्व संग से मुक्त होकर जो शरीर का त्याग करता है वही पंडित मरण से मरा कहलाता है। क्योंकि असंवर वाला अनेक काल में भी जितनी कर्म की निर्जरा करता है, उतने कर्मों को संवर वाला और तीन गुप्ति से गुप्त जीव एक श्वास मात्र में खत्म करता है। निश्चय नय से तीन दण्ड का त्यागी, तीनों गुप्ति से गुप्त, तीन शल्यों से रहित त्रिविध-अर्थात् मन, वचन, काया से अप्रमत्त, जगत के सर्व जीवों पर दया में श्रेष्ठ मनवाला, पाँच महाव्रतों में रक्त और संपूर्ण चारित्र रूप अठारह हजार शील गुण से युक्त मुनि विधि पूर्वक मरता है, वह आराधक होता है ।।३७२७।।
जीव जब शरीर से पूर्ण अर्थात् सशक्त अथवा व्याधि रहित हो श्रुत के सार रूप परमार्थ को प्राप्त किया हो और धैर्यकाल हो उसके बाद आचार्य भगवंत के द्वारा आदेश दिया हुआ पंडित मरण को स्वीकार करता है। यह रत्न के करंडक समान (रत्नों को रखने की पेटी के समान) पंडित मरण जिसे प्राप्त होता है वह निश्चय उत्तरोत्तर विशुद्धि को प्राप्त करने वाला है, और यह सविशेष पुण्यानुबंध वाले किसी जीव को ही प्राप्त होता है। और उंबर के पुष्प के समान लोक में दुर्लभ यह पंडित मरण पुण्य रहित जीवों को प्राप्त नहीं होता है। यह पंडित मरण निश्चय सर्व मरणों का मरण है। जराओं को नाश करने में प्रतिजरा है और पुनः जन्म का अजन्म है। पंडित मरण से मरने वाला शारीरिक और मानसिक उभय प्रकार से प्रकट होने वाले असंख्य आकृति वाले सर्व दुःखों को जलांजली देता है। और दूसरा-जीवों को जगत में जो इष्ट सुख सानुबन्ध अर्थात् परस्पर वृद्धि वाला होता है। वह सर्व पंडित मरण के प्रभाव से जानना अथवा-इस संसार में जो कुछ भी इष्ट सानुबंधी और अनिष्ट निरनुबंधी होता है, वह सारा पंडित मरण रूपी वृक्ष का फल जानना। एक ही पंडित मरण सर्व भवों के अनिष्टों को नाश करने में समर्थ है। अथवा एक अग्नि का कण क्या ईंधन के समूह को नहीं जलाता? यह पंडित मरण जीवों का हित करने में पिता, माता अथवा बंधु वर्ग समान है और रणभूमि में सुभट के समान समर्थ है। कुगति के द्वार को बंद करने वाला. सगति रूपी नगर के द्वार को खोलने वाला, और पाप रज का नाश करने वाला, पंडित मरण जगत में विजयी रहों। अधम पुरुषों को दुर्लभ और उत्तम पुरुषों के आराधना करने योग्य, उत्तम फल को देने वाला जो पंडित मरण है, वह जगत में विजयी रहें। जो इच्छने योग्य है और जो प्रशंसनीय भी अति दुर्लभ है, उसे भी प्राप्त करने में समर्थ पंडित मरण जगत में विजयी रहें। चिंतामणी, कामधेनु और कल्पवृक्ष को भी निश्चय से जो असाध्य है, उसे प्रास करने में समर्थ पंडित मरण जगत में विजयी रहें। एक ही पंडित मरण अनेक सैंकड़ों जन्मों का छेदन करता है, इसलिए उसी मरण से मरना चाहिए कि जिसके मरने से मरना अच्छा है, वह सदा के लिए अजर अमर हो जाता है। यदि मरने का भय है तो पंडित मरण से मरना चाहिए। क्योंकि एक पंडित मरण अन्य सभी मरणों का नाश करता है। जिसका आचरणकर उत्तम धैर्य वाला पुरुष सर्व कर्मों का क्षय करता है, उस पंडित मरण के गुण समूह के संपूर्ण वर्णन करने में कौन समर्थ है।
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