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श्री संवेगरंगशाला
परिकम द्वार-मृत्यु काल जानने के ग्यारह उपाय अखण्ड पिंजरे में भी पुरुष को यम ले जाता है। आकर्षण या मरोड़े बिना ही जिसकी अंगुलियाँ सहसा फट जाएँ वह मनुष्य भी अवश्य शीघ्र शरीर को बदलेगा। यदि निमित्त बिना ही मुख अथवा वाचना थक जाये, बोलते बंद हो अथवा निमित्त बिना दृष्टि का नाश, अन्धा हो जाए वह यत्नपूर्वक जीये तो भी तीन दिन से अधिक नहीं जीयेगा। शरीर से स्वस्थ भी जो अपने बाएँ कन्धे का शिखर नहीं देखे, उसे भी अल्पकाल में काल का कोर बनने वाला जानना। जिसके हाथ, पैर को सख्त दबाने पर अथवा खींचने पर भी आवाज नहीं हो, जिसकी रात्री दिग्मोह हो और वीर्य-धातु अति प्रमाण में नष्ट हो और छींक, खाँसी और मूत्र की क्रिया के समय कारण बिना ही जिसे अपूर्व-कभी सुना भी नहीं हो, ऐसी आवाज हो, वह भी यम राजा की खुराक बनता है। स्नान करने पर भी कमलिनी के पत्तों के समान जिसके अंग को पानी स्पर्श न करे, शरीर गीला नहीं हो वह ६ महीने के अन्त में यम का संग करेगा। जिसके स्नान के बाद या विलेपन करते दूसरे अंग गीले होते हुए भी सीना पहले सूख जाये वह अर्धमास-पन्द्रह दिन नहीं जीयेगा। जिसके बाल सूखे फिर भी तेल बिना ही सहसा तेल से व्याप्त हो जाय जैसे अति स्निग्ध हो जाएँ और कंघी किये बिना भी अलग-अलग विभाग वाला बनना, दोनों भृकुटियों सिकुड़े बिना भी सिकौड़ी हुई दिखे अथवा कम्पायमान होती पांपण नेत्रों के अंदर प्रवेश करती हो अथवा बाहर निकलती दिखे अथवा उल्लू, कबूतर की आँखों के समान दोनों आँखें निमेष रहित स्थिर हों तथा जिसकी अभ्रान्त-निर्मल दृष्टि नष्ट हो वह भी शीघ्र मरता है। जिसकी नासिका सहसा टेढ़ी हो जाये, फुसी से युक्त या अत्यन्त फूटी हो या सिकुड़ गयी हो, छिद्र वाली हो गयी हो वह भी अन्य जन्म में जाने को चाहता है। छह महीने में मरने वाले की शक्ति. सदाचार, वायु की गति. स्मृति, बल, और बुद्धि, इन छह वस्तु निमित्त बिना ही परिवर्तन हो जाती है। जिसके शरीर की चोट में से दुर्गंध निकले, रुधिर अति काला निकले, जीभ के मूल में जिसको पीड़ा हो अथवा हथेली में असह्य वेदना हो, जिसकी चमड़ी, केश स्वयं टूटे, जिसके काटे हुए रोम पुनः बढ़े नहीं, जिसके हृदय में अतीव उष्णता रहे, और पेट में अति शीतलता रहे, बाल को खींचने पर भी जिसको वेदना न हो उस मनुष्य को छह दिन में यमपुरी जानेवाला समझना। इस तरह रिष्ट द्वार कहा।
अब विशिष्ट धारणा-शक्ति वाला होता है, इस कारण से कुछ अल्पमात्र यन्त्र प्रयोग को कहता हूँ। १०. यन्त्र द्वार :- अन्य व्याक्षेपों से रहित यंत्र प्रयोग में एकाग्र चित्त वाला औपचारिक विधि करके प्रथम षट्कोण यंत्र के मध्य में 'ॐकार' सहित अधिगत मनुष्य को अपना नाम लिखना चाहिए ।।३३००।। फिर यंत्र के चारों कोणों में मानो अग्नि की सैंकड़ों ज्वालाओं से युक्त अग्नि मण्डल अर्थात् 'रकार' का स्थापन करना चाहिए, उसके बाद छहों कोणों के बाहरी भाग में छह स्वस्तिक लिखना चाहिए। फिर अनुस्वार सहित 'अकार' आदिअं, आं, इं, ई, उं, ऊँ, छह स्वरों से कोणों के बाह्य भागों को घेर लेना चाहिए। स्वस्तिक और स्वर के बीचबीच में छह 'स्वा' अक्षर लिखे फिर चारों और विसर्ग सहित 'यकार' की स्थापना करना और उस यकार के चारों तरफ 'पायु' के पूर से आवृत्त संलग्न चार रेखाएँ खींचना। इस तरह बुद्धि में कल्पना कर या यंत्र बनाकर पैर, हृदय, मस्तक और संधियों में स्थापन करना, फिर स्व, पर आयुष्य निर्णय करने के लिए, सूर्योदय के समय सूर्य की ओर पीठ करके और पश्चिम में मुख करके बैठना अपनी परछाई को अति निपुण रूप में अवलोकन करना चाहिए। यदि पूर्ण छाया दिखाई दे तो एक वर्ष तक मृत्यु का भय नहीं है, यदि कान दिखाई न दे तो बारह वर्ष तक जीता रहेगा, हाथ न दिखने से दस वर्ष में, यदि अंगुलियाँ न दिखे तो आठ वर्ष, कन्धा न दिखे तो सात वर्ष में, केश न दिखे तो पाँच वर्ष में, पार्श्व भाग न दिखे तो तीन वर्ष में, और नाक नहीं दिखे तो एक वर्ष में, मस्तक नहीं दिखें तो छह महीने में, यदि गर्दन नहीं दिखें तो एक महीने में, दाढ़ी नहीं दिखे तो छह महीने में, यदि आँखे
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