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________________ परिवर्म द्वार-मृत्यु काल जानने के ग्यारह उपाय श्री संवेगरंगशाला हाथ की अंगुली से ढांकने पर बाँयी आँख के नीचे प्रकाश दिखाई न दे तो छह महीने में मृत्यु होती है, भृकुटि के विभाग में प्रकाश नहीं दिखे तो तीन महीने में, आँख और कान की ओर प्रकाश नहीं दिखाई दे तो दो महीने में और नाक की ओर प्रकाश दिखाई न दे तो एक महीने में मृत्यु होती है। और इसी क्रमानुसार ऊपर, नीचे, कान, नाक की ओर प्रकाश नहीं दिखे तो उसका आयुष्य क्रमशः दस, पाँच, तीन और दो दिन का जानना। (यह दोनों बातें योगशास्त्र प्रकाश ५ श्लोक १२२ और १२३ में आई हैं) और अन्य लक्ष्य को छोड़कर नेत्रों के ऊपर के पोपचे को नीचे डबड़बाकर अति मन्द, नीचे स्थिर पुतली वाले दोनों नेत्रों को नासिका के अंतिम स्थान पर जैसे स्थिर हो इस तरह निश्चल रखकर जो अपनी नासिका देखते हुए भी नहीं दिखे तो वह पाँच दिन में मर जायगा। इस तरह जो अपनी मुख में से निकली हुई जीभ के अंतिम भाग नहीं देख सकता वह भी एक अहोरात्री रहता है।।३२६६।। अब दस श्लोक से काल चक्र की विधि को कहते हैं। अपनी अवस्था के अनुसार द्रव्य और भाव से परम पवित्र बनकर भी अरिहंत परमात्मा की उत्कृष्ट विधि से श्रेष्ठ पूजा करके, दाहिने हाथ की शुक्ल पक्ष के रूप में कल्पना करके उसकी कनिष्ठा अंगुली के नीचे के पौर में प्रतिपदा, मध्यम पौर में षष्ठी तिथि और ऊपर के पौर में एकादशी तिथि की कल्पना करे, फिर प्रदक्षिणाक्रम से शेष अंगुलियों के पौर में शेष तिथियाँ कल्पना करें, अर्थात् अनामिका अंगुली के तीनों पौरों में दूज, तीज और चौथ की मध्यमा के तीनों पौरों में सप्तमी, अष्टमी और नवमी की तथा तर्जनी के तीनों पौरों में द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी की कल्पना करनी, और अंगूठे के तीनों पौरों में पंचमी, दशमी और पूर्णिमा की कल्पना करनी चाहिए। इसी तरह बाएँ हाथ में कृष्ण पक्ष की कल्पना कर दाहिने हाथ के समान अंगुलियों के पौरों में तिथियों की कल्पना करे, उसके बाद महासात्त्विक बुद्धिशाली आत्मा एकान्त प्रदेश में जाकर पद्मासन लगा करके दोनों हाथों को कमलकोश के आकार में जोड़ करके प्रसन्न और स्थिर मन, वचन, काया वाला उज्ज्वल वस्त्र से अपने अंग को ढांककर उसमें ही एक स्थिर लक्ष्य वाला उस हस्तकमल में काले वर्ण के एक बिन्दु का चिंतन करे, उसके बाद हस्तकमल खोलने पर जिस-जिस अंगुली के अंदर कल्पित सुदि, वदि तिथि में काला बिन्दु दिखाई दे उसी तिथि के दिन निःसंदेह मृत्यु होगी, ऐसा समझ लेना चाहिए। ऐसा ही वर्णन योगशास्त्र प्रकाश ५ श्लोक १२९ से १३४ तक में आया है।] श्री गुरु वचन बिना निश्चय सकल शास्त्र के जानकार होने पर भी, लाखों जन्म में भी किसी तरह अपनी मृत्यु को नहीं जान सकता है। अर्थात् इस विषय में गुरुगम से जानना आवश्यक है। इस तरह दस गाथा से यह काल ज्ञान को बतलाया है। इसका ध्यान प्रतिपदा के दिन करे कि जिससे मृत्यु ज्ञान हो सके। जिसके ललाट, हृदय में अथवा मस्तक में आकृति से दूज के चंद्र समान अपूर्व नसें का उभार हो अथवा रेखा हो, या जिसके मस्तक में उपला के चूर्ण समान दिखे, अथवा गाढ़ काला श्याम दिखे उसका जीवन एक महीने में विनाश हो जायगा। दाँत भी उसके सहसा अत्यन्त नये उत्पन्न हों या कडकडाहट वाले बनें. रुखे अथवा श्याम बन जायें तो उसे भी यम के पास जाने वाला समझना। दाँत के किसी रोग के बिना भी अचानक जिसके दाँत गिरें या टूटें वह शीघ्र अन्य जन्म लेने वाला है। जिसकी जीभ भी श्याम, सफेद, सूज गई हो, माप से अधिक अथवा कम हो जाए या स्थिर हो जाए वह निश्चित मरण का शरण स्वीकार करने वाला है। किसी कारण बिना भी जिसके आँखों में से हमेशा पानी बहे और जीभ में शोष (रोग) हो तो वह अवश्य क्रम से दस और सात दिन में मरता है। गला बंद हो जाये, तो एक प्रहर में और तालु का क्षोभ होते ही एक सौ श्वासों श्वास में वज्र के - 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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