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परिकर्म विधि द्वार - मृत्यु काल जानने के ग्यारह उपाय
श्री संवेगरंगशाला के विस्तार से या वृक्ष की छाल से लपेटे, तथा जो स्वप्न में ही झगड़ा करे तथा जिसका बंधन अथवा पराजय हो, देवमंदिर, नक्षत्र, चक्षु, प्रदीप, दांत आदि गिरे अथवा नाश आदि हो, जूते का नाश हो और हाथ पैर की चमड़ी का पतन हो, स्वप्न में अति क्रोधित हुआ चचेरे लोगों से जिसका तिरस्कार हो अथवा सहसा अति हर्ष होता हो अथवा जिसका विश्वास भंग हो, तथा स्वप्न में ही रसोई घर में, माता के पास, चिता में, लाल पुष्पों के वन में, अति तंग अंधकार में जिसका प्रवेश होता है, स्वप्न में भगवा रंग वाला वस्त्र पहनकर लाल आँख वाला त्रिदण्डधारी या नग्न, काले मनुष्य के मुख का, क्षुद्र मनुष्य का दर्शन हो तथा जो स्वप्न में ही रात्री भोजन करता है तथा मंदिर या पर्वत से गिरता हो, जिस पुरुष को मगरमच्छ निगल जाए, अति काली छाया और वस्त्रों वाली, अति पीली आँखों वाली, वस्त्ररहित, विकृत आकार वाली, क्षीण उदर वाली, अति बड़े नख और रोमांचित वाली तथा हँसती स्त्री को यदि स्वप्न में आलिंगन करते देखे, और अतीव नीच लोग बुलाए और उनके पास जाए अथवा जो हाथी से जुड़ा वाहन द्वारा प्रेत- मृतक भी अथवा मुंडित किसी साधु के साथ खेजड़ा वृक्ष या नीम के वृक्षों से विषम मार्ग वाले जंगल में प्रवेश करें तो वह स्वस्थ भी निश्चय मृत्यु प्राप्त करता है और रोगी तो अवश्य मर जाता है। वह इस प्रकार से ऊपर कहे अनुसार अति भयंकर स्वप्नों को देखकर रोगी अवश्य मरता है और स्वस्थ मृत्यु संदेह को प्राप्त कर जीता रहता है।
स्वप्न सात प्रकार का होता है - (१) देखा हुआ, (२) सुना हुआ, (३) अनुभव किया हुआ, (४) वात पित्त आदि दोष के कारण से, (५) कल्पित भाव का, (६) इच्छित भावों, और (७) कर्म उदय के कारण से आता है। इसमें प्रथम पाँच प्रकार के स्वप्न निष्फल कहे हैं और अंतिम दो प्रकार के जो स्वप्न शुभाशुभ का फल सूचक जानना । उसमें जो स्वप्न अति लम्बा अथवा अति छोटा हो यदि देखते ही नाश हो जाए और जो कभी अति प्रथम रात्री देखा हो वह स्वप्न लम्बे समय में अथवा तुच्छ फल को देनेवाला होता है और जो अति प्रभात में देखा हो वह उसी दिन अथवा महान् फल को देने वाला होता है। और अन्य ऐसा कहते हैं कि रात्री के प्रथम प्रहर में देखा हुआ स्वप्न एक वर्ष में, दूसरे प्रहर में देखा हुआ तीन महीने में, तीसरे प्रहर में देखा हुआ दो महीने में, चौथे प्रहर में देखा हुआ एक महीने में, और प्रभात काल में देखा हुआ स्वप्न दस अथवा सात दिन में फल देता है। यदि प्रथम अनिष्ट स्वप्न को देखकर बाद में इष्ट को देखे तो उसका शुभ फल ही होता है और इसी तरह शुभ स्वप्न देखकर फिर अशुभ स्वप्न देखे तो अनिष्ट फल होता है। तथा श्री जिनप्रतिमा के पूजन से श्री पंच परमेष्ठि नमस्कार महामंत्र का स्मरण करने से तथा तप, संयम, दान, नियम आदि धर्म अनुष्ठान करने से पाप स्वप्न भी मंद फलवाला हो जाता है। इस तरह से स्वप्न द्वार को कहा है ।। ३२२८ ।।
९. रिप्ट द्वार : अब रिष्ट अर्थात् अमंगल द्वार को कहते हैं, क्योंकि अमंगल के बिना मृत्यु नहीं होती है और अमंगल देखने के पश्चात् जीवन टिकता नहीं है। इसलिए आराधक वर्ग को सद्गुरु के उपदेशानुसार सर्व प्रयत्न से अमंगल को हमेशा अच्छी तरह देखना चाहिए । निमित्त बिना भी तर्क रहित भी पुरुष को जो प्रकृति के विकार का सहसा अनुभव होता है उसे यहाँ पर रिष्ट कहा है। अचानक जिसका पैर कीचड़ या रेती आदि में अथवा आगे-पीछे अपूर्ण दिखाई दे, वह आठ महीने भी जीता नहीं रह सकता है। घी के पात्र में प्रतिबिम्बित हुआ सूर्य
बिम्ब देखते बीमार को यदि वह पूर्व दिशा खण्डित देखे तो छह महीने, दक्षिण दिशा खण्डित दिखे तो तीन महीने, पश्चिम दिशा खण्डित दिखे तो दो महीने और उत्तर दिशा खण्डित दिखे तो एक महीने जीवित रहता है। इससे अधिक जीता नहीं रहेगा। और वह सूर्यबिम्ब रेखावाला देखे, पन्द्रह दिन, छिद्रवाला देखे तो दस दिन और धूम्र सहित देखे तो पाँच दिन तक जीता रहेगा, इससे अधिक नहीं जीयेगा । वायु रहित भी जिसके घर में दीपक
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